सरकारी हो या प्राइवेट, एक अच्छी जॉब, एक सुरक्षित करियर और ठीक-ठाक सैलरी. अगर ये सब आपके पास है और आप एक इज़्ज़तदार ज़िन्दगी जी रहे हैं, तो समझिये आप बहुत ख़ुशक़िस्मत हैं.
क्योंकि आज़ादी के इतने सालों बाद भी इस देश में कई ऐसे लोग हैं, जो आज भी मैला ढोने (मैन्युअल स्कैवेंजर्स) का काम करते हैं. सोच कर देखिये, एक ऐसा जीवन जहां बिना किसी सुरक्षा उपकरण के आपको बदबूदार गंदे नालों और सीवर में उतर कर अपने हाथों से कूड़ा साफ़ करना पड़े. इसकी कल्पना करना ही डरावना है लेकिन ये भारत के लाखों लोगों की सच्चाई है.

मैला ढोने वाले मजबूर सफ़ाई कर्मचारियों को एक नहीं, कई मुश्किलों का सामना करना पड़ता है
स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं
सामाजिक भेदभाव और शारीरिक हिंसा
बेहद कम मेहनताना

वहीं इन कर्मचारियों से सहानुभूति रखने वाले लोगों ने कई बार इनके हक़ के लिए आवाज़ उठायी है. कई निजी कंपनियों और युवा एंट्रेप्रेन्योर्स ने ऐसे उपकरण भी बनाये हैं, जो इन मज़दूरों की सुरक्षा के काम आएंगे या इनकी जगह काम भी कर सकते हैं लेकिन ये सब अभी शुरुआती स्टेज पर ही हैं.
अगर आज सबसे पहले किसी चीज़ की आवश्यकता है तो वो है जानकारी. सिर्फ़ सरकारी स्तर पर ही नहीं, बल्कि गली-मोहल्ले से ले कर हर घर में मौजूद इंसान को मालूम होना चाहिए कि ये कितना बड़ा मुद्दा है. आख़िर कब तक हम अपने आस-पास स्वच्छता से जुड़े मुद्दे, मैला ढोने वालों की समस्याओं, सेप्टिक टैंक और सीवर से फैलती गन्दगी और बीमारियों जैसे गंभीर मुद्दों को यूं ही सहते रहेंगे.