सरकार ने इंसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कानून में किया बदलाव, कर्ज नहीं चुकाया तो पड़ेगा भुगतना

 


इंसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कानून में 7 संसोधन किए गए है. कैबिनेट ने इन सभी संसोधनों को मंजूरी दे दी है. अब कंपनियों के मर्जर और डीमर्जर को लेकर क्लियरिटी आएगी.


इंसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कानून में  7 संशोधन किए गए है. कैबिनेट ने इन सभी संशोधनों को मंजूरी दे दी है. अब कंपनियों के मर्जर और डीमर्जर को लेकर क्लियरिटी आएगी. आई एंड बी मंत्री प्रकाश जावड़ेकर का कहना है कि  आईबीसी नए भारत के निर्माण में बड़ा सुधार कानून है. इसमें संशोधन कर अधिक पारदर्शी बनाया जायेगा.


आपको बता दें कि इनसॉल्वेंसी एवं बैंकरप्सी संशोधन विधेयक, 2017' को संसद में पारित किया गया था. उस दौरान वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा था कि 'इनसॉल्वेंसी एवं बैंकरप्सी संशोधन विधेयक, 2017' पुराने 'इनसॉल्वेंसी एवं बैंकरप्सी संशोधन विधेयक, 2016' की जगह लेगा. इंसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड के अंतर्गत कर्ज न चुकाने वाले बकाएदारों से निर्धारित समय के अंदर कर्ज वापसी के प्रयास किए जाते हैं. इस कोशिश से बैंकों की आर्थिक स्थिति में कुछ हद तक सुधार जरूर हुआ है.


क्या है इनसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्ट्सी कोड - इनसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्ट्सी कोड के तहत अगर कोई कंपनी कर्ज नहीं देती है तो उससे कर्ज वसूलने के लिए दो तरीके हैं. एक या तो कंपनी को दिवालिया घोषित कर दिया जाए. इसके लिए एनसीएलटी की विशेष टीम कंपनी से बात करती है.


कंपनी के मैनेजमेंट के राजी होने पर कंपनी को दिवालिया घोषित कर दिया जाता है और उसकी पूरी संपत्ति पर बैंक का कब्जा हो जाता है.


बैंक उस असेट को किसी अन्य कंपनी को बेचकर कर्ज के पैसे वसूलता है. बेशक यह राशि कर्ज की राशि से कम होता है, मगर बैंक का पूरा कर्जा डूबता नहीं है.


कर्ज वापसी का दूसरा तरीका है कि मामला एनसीएलटी में ले जाया जाए. कंपनी के मैनेजमेंट से कर्ज वापसी पर बातचीत होती है. 180 दिनों के भीतर कोई समाधान निकालना होता है.
कंपनी को उसकी जमीन या संपत्ति बेचकर कर्ज चुकाने का विकल्प दिया जाता है. ऐसा न होने पर कंपनी को ही बेचने का फैसला किया जाता है. खास बात यह है कि जब कंपनी को बेचा जाता है तो उसका प्रमोटर या डायरेक्टर बोली नहीं लगा सकता