छात्रों में छिपे हुनर को तराशकर उनके लिए संभावनाओं के द्वार खोलता है कल्पतरू

     वो कक्षा के बैक बेंचर्स, जिन्हें ब्लैकबोर्ड पर लिखे अक्षर समझ नहीं आते थे। गणित जिन्हें अंधेरी काली सुरंग सा लगता था अंग्रेजी तो सर के ऊपर से ही गुजर जाती थी। पढ़ाई में कुछ नहीं कर पाने के कारण नाकारा मान लिए गए इन छात्रों में छिपे हुनर को तराशकर उनके लिए संभावनाओं के द्वार खोलता है कल्पतरू।


     झारखंड की राजधानी रांची से 35 किलोमीटर दूर बसी हेचल पंचायत मे एक हैक्टर में फैले इस ट्रेनिंग सेंटर ने इंटर व मैट्रिक फेल युवाओं को स्किल ट्रेनिंग के द्वारा सम्मानजनक व आत्मनिर्भर जीवन जीने की राह दिखाई है। शिक्षा ही योग्यता एकमात्र पैमाना नहीं है इस अनूठी सोच को धरातल पर उतारने के लिए संघ के पूर्वी क्षेत्रसंघचालक व राष्ट्रीय सेवा भारती के अखिल भारतीय अध्यक्ष श्री सिद्धीनाथ सिंह के प्रयासों से 2009 में शुरू हुए इस श्रमिकशिल्पी प्रशिक्षण केंद्र में दी जा रही स्किल ट्रेनिंग व प्रैक्टिकल नालेज ने सैंकड़ो ग्रामीण युवाओं का जीवन संवार दिया है।


मिलते हैं रामचंद्र सिंह से सोनभद्र जिले के एक छोटे से गाँव अंतरा के किसान परिवार का यह युवक पढ़ाई में हमेशा पटखनी ही खाता रहा। हाईस्कूल फेल होने के बाद भविष्य जब अंधकारमय नजर आ रहा था तब वो कल्पतरु के संपर्क में आ गया। ….. और बस यहीं से उसका पूरा जीवन बदल गया। यहाँ से वेल्डिंग एवं मशीन मेकिंग की ट्रेनिंग करने के बाद आज वह 'मास्टर वेल्डर के रूप में लगभग 40,000 रूपये प्रति माह कमा लेता है जिस रामचंद्र से उसके माता पिता की सारी उम्मीदें टूट गई थी व् रिश्तेदारों के तानों नें जिसका जीना दूभर कर दिया था वो आज वह अपने माता पिता के हर सपनों को पूरा कर रहा है।


'अर्न व्हाइल लर्न' की अवधारणा पर काम कर रहे कल्पतरु में पढ़ाई के साथ ही साथ शिक्षार्थी कमाने भी लगते हैं। दो साल की कोर्स अवधि, प्रतिवर्ष 15,000 की फीस, जिससे ज्यादा राशि वो प्रैक्टिकल ट्रेनिंग के दौरान प्लांट्स पर काम करके कमा लेते हैं। यह सब कल्पतरु को अन्य संस्थानों की अपेक्षा कहीं अधिक ऊंचाई पर ले जाती हैं। 
नजदीक के मुस्लिम बहुल हफुआ गांव की तो कल्पतरु ने छवि ही बदल डाली है । कभी इस गाँव को दबंगई व विवादों के लिए जाना जाता था, अब वहाँ के युवा विकास की डगर पर आगे बड़ा चुके हैं, कल्पतरु में संस्कारित और प्रशिक्षित करीब 22 युवक आज दुबई व सऊदी अरब में विभिन्न कंपनियों में प्लेस्ड हैं और अच्छे पैसे कमा रहे हैं।


आलिम अंसारी और उसके जैसे दस इन्टर फेल युवाओं नें जब कल्पतरु में फिटर की ट्रेनिंग ली थी तब इस बात की उम्मीद भी कम थी वो तीन साल का कोर्स भी पूरा कर पाएंगे आज आलिम के दस साथी ओमान में एक निजी कंपनी में काम करते हुए अच्छा कमा रहे हैं!


जब आसपास के गांवो से इंटर व मैट्रिक फेल युवक मिलना बंद हो गए तब कल्पतरू ने ग्रेजुएट युवाओ के लिए भी दरवाजे खोले। इतना ही नहीं प्रैक्टिकल नालेज की चाह कुछ इंजीनियर्स को भी संस्थान तक ले आई। कभी ट्रेनिंग लेने आए व फिर सदा के लिए कल्पतरू का हिस्सा बन गए आदित्य सिंह बताते हैं कि जिस प्रैक्टिकल नाँलेज की कमी उन्हें पूरी इंजीनियरिंग की पढ़ाई के दौरान खटकती रही, वो सबकुछ उन्हें यहाँ मिला। अब वे यहाँ छात्रों को ट्रेनिंग देते हैं। वह कहते हैं यहां भले ही मैं ज़्यादा पैसा न कमा पाऊं, पर जो वर्क सैटिसफैक्शन कल्पतरु में है, वह कहीं और नहीं। इंडस्ट्री फ्रेंडली कोर्सों की फेहरिस्त में यहाँ एन.डी.पी, वेल्डिंग, फिटर मैकेनिक, इलैक्ट्रानिक फिटिंग समेत रोजगार संभावनाओं से युक्त अनेक ट्रेनिंग कार्यक्रम चलते हैं। साथ ही यहाँ जैविक खेती, केंचुआ व कम्पोस्ट खाद निर्माण ट्रेनिंग, गौमूत्र से कीटनाशक निर्माण, बैल चालित आटा चक्की व मशरूम उत्पादन जैसे कई काम भी सिखाए जाते हैं। संस्थान ग्रामीण महिलाओं को सिलाई ट्रेनिंग के साथ ही उनके प्रोडक्ट्स मार्केटिंग में भी मदद करता है।
संस्थान के प्रिंसिपल व संघ के स्वयंसेवक संजीतजी बताते हैं प्रशिक्षण प्राप्त युवाओं के प्लेसमेंट हेतु संस्थान ने कई कंपनियों से टाईअप कर रखा है। वे कहते हैं यहाँ के छात्र जीवन भर कल्पतरू परिवार का हिस्सा बने रहते हैं। उनके मुताबिक चार बैच पासआउट होने के बाद अब आलम यह है कि आसपास गांवो में हाइस्कूल-इंटर फेल युवा मिलना ही बंद हो गए हैं। पढ़ाई योग्यता का पैमाना नहीं होती इस सोच से जन्मा कल्पतरू आज ऐसे अनगढ़ युवाओं को तराश कर हीरा बना रहा है, जिन्हें कभी उनके अपनों ने ही खोटा सिक्का जान उनसे सारी उम्मीदें खत्म कर ली थी।


साभार : संजीव जी