आरएसएस से इमरान खान को इतनी दिक्कत क्या है???


आरएसएस से इमरान खान को इतनी दिक्कत क्या है???


पिछले 50 दिन से अपने हर भाषण में वो आरएसएस पर हमला बोलते हैं... हद हो गई, दुनिया के सबसे बड़े मंच यूएन में उन्होने आरएसएस और गुरू गोलवलकर पर अपनी भड़ास निकाली... सवाल उठता है कि इमरान या यूं कहें कि पाकिस्तान को आरएसएस से इतनी नफरत क्यों हैं... 


दरअसल इसकी वजह है आरएसएस का वो राष्ट्रवादी इतिहास जिसने हमेशा पाकिस्तान के विचार को चुनौती दी है... इमरान जिन गोलवलकर का नाम लेकर यूएन में चीख रहे थे आखिर उन गोलवलकर ने ऐसा क्या किया था कि आजतक पाकिस्तान को वो याद हैं...


वो तारीख थी 5 अगस्त 1947... जगह थी कराची... भारत पाकिस्तान का बंटवारा तय हो गया था और ये भी तय था कि कराची ही पाकिस्तान की राजधानी होगी... और इसी कराची में, विभाजन से महज 10 दिन पहले सफेद कुर्ते पायजामे में श्वेत दाढ़ी वाला एक शख्स जिन्ना के शहर में, जिन्ना की राजधानी में, जिन्ना के पाकिस्तान को चुनौती दे रहा था... और वो हस्ती थे गुरू गोलवलकर... 


यकीन मानिए, आगे आप गोलवलकर और संघ के स्वयंसेवकों के साहस के बारे में जो पढ़ने वाले हैं वैसा साहस कांग्रेस तो छोड़िए उनके नेता गांधी, नेहरू और यहां तक कि पटेल ने भी नहीं दिखाया था... ये बात मैं पूरे सम्मान के साथ कह रहा हूं की गांधी, नेहरू और पटेल इनमें से किसी नेता कि इतनी हिम्मत नहीं थी कि वो  अगस्त 1947 में संभावित पाकिस्तान के किसी शहर में जाकर हिंदुओं के अंदर भर चुके डर को निकालने की कोशिश करते... लेकिन गुरू गोलवलकर तो अलग मिट्टी के बने थे...


उस दिन दोपहर में गुरू गोलवलकर की कराची में सभा होने वाली थी... आरएसएस के हज़ारों कार्यकर्ताओं ने पूरे गणवेश (सिकलुर जिसे निक्कर कहते हैं) में पूर्वी कराची की गलियों से पथसंचालन निकाला... 


लाल कृष्ण आडवाणी अपनी किताब "मेरा देश, मेरा जीवन" में लिखते हैं कि - "करीब 10 हजार स्वयंसेवक एकताल और एक वेशभूषा में अर्धसैन्य बल बैंड पर राष्ट्रभक्ति के गीत गाते हुए पाकिस्तान की नई बननेवाली सरकार को चुनौती देते हुए सभास्थल तक पहुंचे... संघ के इस कार्य से कराची के डरे हुए हिंदुओं के बीच हौंसला उत्पन्न हुआ"


उस दिन कराची में गुरू गोलवलकर को सुनने के लिए एक लाख से ज्यादा लोगों की भीड़ जमा हुई... इस सभा में कराची में सिंधी समुदाय के सबसे बड़े नेता टी.एल. वासवाणी ने कहा - "घोर दुख और परीक्षा की इस घड़ी में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने सिंधियों के साथ खड़े होकर जो महान कार्य किया है उसके लिए सिंधी समाज हमेशा संघ के प्रति कृतज्ञ रहेगा"... 


इसके बाद बारी थी गुरू गोलवलकर के उद्बोधन की... गुरूजी ने एक लाख लोगों की भीड़ के सामने अपनी गंभीर आवाज़ में जो कहा था वो आज भी प्रासंगिक है, उन्होने कहा - "हमारी मातृभूमि पर विपदा आन पड़ी है... भारत का विभाजन एक पाप है और जो इसके लिए जिम्मेदार हैं उन्हे भावी पीढ़ियां कभी क्षमा नहीं करेंगी... मुस्लिम लीग ने जोर जबरदस्ती और हिंसा से पाकिस्तान को प्राप्त किया है, जिसके आगे कांग्रेस नेतृत्व ने घुटने टेक दिए... 


मुसलमान इस विचार से भ्रमित हुए कि वो एक अलग राष्ट्र हैं क्योंकि वो इस्लाम के अनुयायी हैं... उन्हे ये मालूम होना चाहिए कि वो उसी प्रजाति के हैं जिसके पूर्वज हिंदू थे... उनकी सभ्यता और संस्कृति भारतीय है न कि अरबी... दुर्भाग्य से मुसलमानों के दिमाग में ये बैठा दिया गया है कि भारतवर्ष में इस्लाम के आने के पहले जो था, वो उनका नहीं है... अब जब सिंध अलग हो गया है तो हिंदुओं को अपनी रक्षा स्वयं करनी होगी... लेकिन आत्मरक्षा के लिए शक्ति की आवश्यकता होती है और शक्ति एकता से आती है... हमारे स्वयंसेवक सिंध में हिंदुओं की रक्षा में अपना सर्वस्व बलिदान कर देंगें।"


सोचिए पाकिस्तान बनने के ठीक 10 दिन पहले, पाकिस्तान की राजधानी कराची में गुरू गोलवलकर का वो भाषण, वो हज़ारों की भीड़, वो 10 हज़ार खाकी गणवेश वाले स्वयंसेवक, जिन्ना और उसके चेलों के आंखों में किस कदर नश्तर की तरह चुभें होंगे... और आज भी चुभ रहे हैं... तभी तो ये इसी खाकी गणवेश का दर्द इमरान खान के यूएन वाले भाषण में उतर आया...