मामला बिलकुल साफ था. कोई जटिलता नहीं थी. कोई पेचीदा मामले नहीं थे. कोई उलझन भी नहीं थी. महाराष्ट्र में भाजपा और शिवसेना ने मिलकर विधानसभा का चुनाव लड़ा था. यह प्री-पोल अलायंस था. हिन्दुत्व इसका एक प्रमुख आधार था.
कुल २८८ सीटों में से भाजपा ने लगभग १५० सीटों पर चुनाव लड़ा. वे १०५ पर जीते. उनका स्ट्राइक रेट ७०% रहा. शिवसेना ने १२४ सीटों पर चुनाव लड़ा. वे ५६ सीटों पर चुनाव जीते. उनका स्ट्राइक रेट ४५% रहा. कुल मिलाकर १६१ सीटों पर यह प्री-पोल अलायंस (गठबंधन) विजयी रहा. यह स्पष्ट बहुमत था. इस गठबंधन ने बड़े ज़ोर – शोर के साथ, विजय उत्सव मनाना चाहिए था.
किन्तु यह हुआ नही. शिवसेना ने होने नहीं दिया.
परिणाम घोषित होने के दूसरे ही दिन शिवसेना प्रमुख उध्दव ठाकरे ने बयान दिया, “मुख्यमंत्री तो शिवसेना का ही होगा. और इसके लिए सारे विकल्प खुले हैं।“
यह इस गठबंधन पर पहली चोट थी. यह वक्तव्य गठबंधन धर्म के विरोध में था. पहले तो सब को लगा, की यह शिवसेना की 'बार्गेनिंग स्ट्रेटेजी' हैं. यह रणनीति, किसी भी राजनीतिक दल के लिए स्वाभाविक हो सकती हैं. अपना आधार बढ़ाने के लिए राजनीतिक दल ऐसी थोड़ी बहुत सौदेबाजी करते हैं. भाजपा भी उप-मुख्यमंत्री पद और कुछ महत्वपूर्ण विभाग शिवसेना को दे सकती थी.
किन्तु ऐसा हुआ नहीं.
शिवसेना अड़ गई. 'भाजपा ने शिवसेना को ढाई साल मुख्यमंत्री बनाने का वचन दिया था' ऐसा शिवसेना ने कहा. यह सच नही था. शिवसेना का नेतृत्व भी यह जानता था. इसलिए वे ज्यादा आक्रामकता के साथ मुख्यमंत्री पद की मांग करने लगे. पूरे चुनाव में भाजपा ने देवेन्द्र फडणवीस को मुख्यमंत्री के रूप में प्रस्तुत किया था. सारी चर्चाओं मे, भाषणों मे, विज्ञापनों में देवेंद्र फडणवीस ही मुख्यमंत्री के रूप में प्रस्तुत होते रहे. मुंबई की मोदी जी की सभा में मंच पर, देवेन्द्र फडणवीस और उध्दव ठाकरे, दोनों उपस्थित थे. उनके सामने मोदी जी ने कहा, 'अगले मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ही रहेंगे।'
इस सारे कालखंड में, चर्चाओं में, प्रसंगों में शिवसेना बिलकुल चुप थी. न तो उध्दव ठाकरे ने, और न ही शिवसेना ने इस का खंडन किया. चुनाव प्रचार में यह बिन्दु कही नहीं आया. 'हमारा ही मुख्यमंत्री होगा' यह शिवसेना ने भी प्रचार में कभी नहीं कहा.
चित्र बदला, जब परिणामों में यह दिखा की भाजपा अपने दम पर सरकार नहीं बना सकती. तब शिवसेना ने, मात्र ५६ विधायकों के सहारे, २८८ सीटों वाली विधानसभा मे, 'मुख्यमंत्री हमारा ही रहेगा' यह अड़ी दी. इसके लिए वे शरद पवार की मदद लेने लगे. शिवसेना प्रवक्ता संजय राऊत, लगातार शरद पवार से मिलने लगे. पवार सोनिया गांधी से मिलने दिल्ली गए.
अर्थात हिन्दुत्व पर मर्माघात करने वाली सारी शक्तियों का समर्थन शिवसेना के लिए पवित्र था. भगवान एकलिंगजी के परम भक्त मिर्झा राजे जयसिंह, किससे लड़ने महाराष्ट्र आए थे...? हिंदूपदपातशाही के संस्थापक छत्रपति शिवाजी महाराज से. साथ किसे लाये थे ? धर्मांध दिलेरखान को…! शिवसेना ने यही किया.
१०५ विधायकों के सामने, मात्र ५६ विधायक लेकर मुख्यमंत्री पद की दावेदारी ठोकना, यह हिन्दुत्व के गठबंधन के पीठ के पीछे छुरा घोपना हैं...!
दुर्भाग्य, हिन्दू हृदय सम्राट बालासाहेब ठाकरे की शिवसेना, २९ वर्षीय युवराज आदित्य ठाकरे को मुख्यमंत्री बनाने, शरद पवार और सोनिया गांधी के सामने लाचार होकर, सत्ता की भीख मांग रही हैं...!
बालासाहब, हम सभी शर्मिंदा हैं...!
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