ऐसी करतूतों वालों को चाणक्य नहीं कहा जाता।

 


इसी पुष्टि की प्रतीक्षा कर रहा था मैं।
शपथ ग्रहण के बाद उद्धव ठाकरे ने आज जब पहली कैबिनेट मीटिंग की तो उसके मंत्रिमण्डल के छह मंत्रियों के साथ ही साथ बिना मंत्री पद की शपथ लिए हुए, बिना मंत्री बने ही अजित पवार भी उस कैबिनेट मीटिंग में बैठा हुआ था। यह प्रकरण इस सरकार की पहली कैबिनेट में ही अजित पवार की ताक़त और जलवे तथा मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की हैसियत का शर्मनाक सच उजागर कर गया। भारत की राजनीति में यह पहला और अकेला उदाहरण है जहां सरकार की कैबिनेट मीटिंग में मंत्रिमंडल का सदस्य बने बिना ही कोई व्यक्ति पूरे जलवे के साथ डटा हुआ था। केवल 4-5 दिन पहले पार्टी तोड़ने की कोशिश करने वाले को शरद पवार सरीखा घाघ और शातिर कोई पार्टी अध्यक्ष इतना महत्व नहीं देता। अतः आज के घटनाक्रम ने बिल्कुल स्पष्ट कर दिया कि 4-5 दिन पहले अजित पावर ने जो कुछ किया था वह शरद पवार की कठपुतली के रूप में ही किया था।
अब बात मुद्दे की......
20 नवम्बर की दोपहर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से शरद पवार ने लगभग एक घण्टे की मुलाकात अकेले की थी। एनसीपी के किसी भी छोटे या बड़े नेता को वो अपने साथ लेकर नहीं गया था। उस मुलाकात के बाद बाहर निकले शरद पवार ने कहा था कि उसने महाराष्ट्र के किसानों की समस्या पर बात करने के लिए बंद कमरे में प्रधानमंत्री मोदी से एक घण्टे लम्बी मुलाकात की है। ,
शरद पवार की इस बात पर उन्हीं राजनीतिक विश्लेषकों ने विश्वास कर लिया था जिनकी बुद्धि वास्तव में घास चरने गई थी। इस मुलाकात के बाद शरद पवार 22 की सुबह मुम्बई लौटा था और 22 की रात को ही अजित पवार एनसीपी के समर्थन की चिट्ठी लेकर फणनवीस के पास पहुंच गया था। उसकी इस बात पर ज्यादा सोच विचार किए बिना उसको साथ ले जाकर देवेन्द्र फडणवीस ने वो चिट्ठी गवर्नर को सौंप दी थी। परिणामस्वरूप रात में ही कैबिनेट ने राष्ट्रपति शासन हटाने की संस्तुति की थी और राष्ट्रपति ने सवेरे के सूर्योदय के साथ ही उस संस्तुति को स्वीकार कर लिया था।
अपने पेशाब से डैम भर देने की गाली देकर किसानों को भगा देने के लिए जग कुख्यात हुए भ्रष्टाचार के पुतले अजित पवार का राजनीतिक कद क्या इतना बड़ा और भारी है कि वो अचानक रंग बदल कर कुछ कहे और उसके कहे पर महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री, महाराष्ट्र का राज्यपाल, देश का प्रधानमंत्री, देश का राष्ट्रपति इतना विश्वास कर लें कि उसके कहे पर तत्काल फैसला लेकर त्वरित कार्रवाई कर डालें.?
इस बात पर भी वही राजनीतिक विश्लेषक विश्वास कर सकते हैं जिनकी बुद्धि वास्तव में घास चरने गई हो।
दरअसल इस पूरे घटनाक्रम में अजित पवार और देवेन्द्र फडणवीस की भूमिका मात्र एक डाकिए की ही थी। 
इस सनसनीखेज राजनीतिक थ्रिलर की पटकथा 20 नवम्बर की दोपहर प्रधानमंत्री से अकेले मिलने पहुंचे शरद पवार ने उस एक घण्टे की मुलाक़ात में लिख दी थी। राजनीति की दुनिया में शरद पवार सरीखे राजनीतिक कद और पद वाले व्यक्ति द्वारा एकांत में कही गयी बात को बहुत वजनदार माना जाता है। विशेषकर यह वजन तब और ज्यादा बढ़ जाता है जब ऐसा व्यक्ति देश के प्रधानमंत्री से बंद कमरे में अकेले में कोई बात कहता करता है। यही कारण है कि प्रधानमंत्री मोदी ने भी शरद पवार की बातों पर विश्वास कर लिया था।
यही वह बिंदु था जहां प्रधानमंत्री मोदी बुरी तरह मात खा गए थे। वह यह समझ ही नहीं पाए कि उनके सामने बैठा एक कद्दावर राष्ट्रीय नेता उनके साथ सड़कछाप राजनीतिक मक्कारी का खेल खेलने आया है। 
यही कारण है कि उन्होंने देवेन्द्र फणनवीस को शपथ लेने के कुछ क्षणों बाद ही बधाई देने में कोई संकोच नहीं किया था। जबकि येदियुरप्पा ने जब जबरिया सरकार बनाई थी तो प्रधानमंत्री ने उस समय बधाई देने के बजाय मौन साधे रखा था।
जहां तक मैंने देखा जाना समझा है, उस हिसाब से नरेन्द्र मोदी से सम्भवतः पहली बार इतनी बड़ी राजनीतिक चूक हुई है। इसका कारण भी सम्भवतः यही है कि दो कद्दावर राष्ट्रीय नेताओं के मध्य हुई वार्ता और विश्वास का उपयोग दोनों में से एक नेता द्वारा इतने निम्न स्तर की राजनीतिक नंगई का इतना घृणित उदाहरण देश ने इससे पहले कभी देखा नहीं था। 
इसीलिए कल मैंने लिखा था कि महाराष्ट्र का घटनाक्रम देवेन्द्र फणनवीस का राजनीतिक नौसिखियापन या अनुभवहीनता का परिणाम नहीं है। यह घटनाक्रम अजित पवार की भी किसी धूर्तता का परिणाम नहीं है। वह तो मात्र एक मोहरा था जिसे शरद पवार ने आगे बढ़ाया था।
यह पूरा घटनाक्रम राजनीति के उच्चतम स्तर पर निम्नतम स्तर की सड़कछाप  राजनीति के घटिया हथकंडे आजमाने अपनाने की शरद पवार की घिनौनी करतूत का ही परिणाम थी।
शरद पवार अपनी इस घिनौनी राजनीति से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को बुरी तरह मात देने सफल हुआ है। लेकिन न्यूजचैनली विदूषकों की तरह ऐसी करतूतों वालों को चाणक्य नहीं कहा जाता।
-