वाराणसी | शिव की नगरी काशी से श्रीराम का एक अनूठा नाता है। काशी विश्वनाथ के 'आंगन' में राम के नाम से एक बैंक राम रमापति बैंक बीते 92 सालों से आस्था का खजाना जमा कर रहा है। भक्तों की आस्था ही नहीं, बल्कि उन्हें विश्वास भी है कि जिस राम नाम की पूंजी को वे इस बैंक में जमा करता है उसका तीनों लोक सुधरेगा। राम नाम की पूंजी का ब्याज सारी मनोकामनाएं पूरी करेगा।
इस अनूठे बैंक के अमेरिका, लंदन, रूस, कंबोडिया से लेकर कई मुस्लिम राष्ट्रों के 25 लाख से अधिक खाताधारक हैं। बैंक की नींव महाकुंभ में एक मुलाकात के बाद पड़ी थी शिव के अनन्य भक्त त्रिपुरा भैरवी निवासी दास छन्नू लाल वर्ष 1926 में प्रयागराज गए थे महाकुंभ में। कल्पवास के दौरान उनकी मुलाकात बाबा सत्यराम दास से हुई। दास छन्नूलाल ने उनसे मार्गदर्शन मांगा तो उन्होंने मुस्कान के साथ अपने झोले से रामलला की तस्वीर निकाली।
कहा अपने घर से राम नाम का संग्रह करो। रामनाम लिखने के लिए कलम दवात, स्याही के साथ सारी जिम्मेदारी तुम्हारी होगी भक्तों को देने की। कब तक पूछने पर कहा जब तक अगला आदेश न मिले, एक पीढ़ी से अगली पीढ़ी तक। जब छन्नू लाल ने उनसे दोबारा मिलने की इच्छा जताते हुए निवास स्थान पूछा तो कैलाश पर्वत कहते हुए वह भीड़ में गायब हो गए। काशी आते ही दास छन्नूलाल ने अपने घर में श्रीराम के बाल्यकाल की मूर्ति स्थापित करने के साथ ही राम रमापति बैंक की स्थापना की। आज उनकी पांचवीं पीढ़ी के सुमित मेहरोत्रा इस जिम्मेदारी को बखूबी निभा रहे। सुमित बताते हैं कि राम रमापति बैंक में खाता खोलने के लिए कुछ नियम-कानून हैं जिनका पालन स्थापना काल से हो रहा।
बैंक खाते की तरह ही यहां भी खाता खोलने के लिए फार्म भरा जाता है। इस फार्म पर नाम-पता दर्ज करने के साथ ही भक्तों को अपनी मनोकामना भी लिखनी होती है। बैंक की अपनी नियमावली के तहत खाता धारक के आहार, व्यवहार-विचार, मन, वचन और कर्म पर भी ध्यान दिया जाता है। बैंक की तरफ से कागज, कलम और दवात मिलता है जिसपर रामनाम लिखना होता है।