संसदीय समितियों में रहने या न रहने से कोई अन्तर नहीं पड़ता

देशभक्त कौन?


जिसने वर्षों तक फर्जी मुकदमे में अमानुषिक यातनायें सही,उसे संसदीय कमिटी से हटने का क्या भय?देशभक्त को तो देशभक्त ही कहेगी!


कई लोग कहते हैं कि साध्वी प्रज्ञा को राजनीति का ज्ञान नहीं,बिना सोचे समझे बयान देती है । उसने दीक्षा ले रखी है,जिसमें झूठ बोलना मना है । अब वह झूठ बोलने वाली राजनीते सीखे या अपनी दीक्षा का पालन करे?


हालाँकि गोडसे ने एक कार्य गलत किया,
बुलेट की कीमत बहुत होती है ।


 'महात्मा' गाँधी कुछ वर्ष और रहते तो गाँधीवाद का श्राद्ध अपने चेलों के हाथों ही देख लेते,


और जनता भी महात्मा की असलियत देख लेती ।


सरोजिनी नायडू ने कहा था — “इस महात्मा (और इसकी बकरी) को मेनटेन करने के लिये हमें लाखों रूपये खर्च करने पड़ते हैं!”


गाँधी पर  सरोजिनी नायडू के शब्द थे — 
"it costs a lot of money to keep this man in poverty." 
(इस आदमी को गरीबी में रखने के लिये बहुत धन खर्चना पड़ता है!)


(सरोजिनी नायडू में इतनी अक्ल नहीं थी कि इतना सुन्दर व्यंग्य सोच सके । एक अमरीकी पत्रकार के शब्द चुराये थे जिसने लिखा था —
“It costs a lot to keep Bapu poor”.)


उसका मुँह बन्द करने के लिये “महात्मा” ने उसे “बुलबुल” की उपाधि दे दी!


पता नहीं किस गधे ने “बुलबुल” की एक कविता स्कूल की मेरी पाठ्यपुस्तक में डाल दी थी,पढ़कर सिर भन्ना गया । कैसे उसने स्कूल पास की होगी?असली बुलबुल यदि नकली बुलबुल की कविता पढ़ लेती तो शर्म के मारे चुल्लू भर पानी में डूब मरती ।
बिन भतीजे वाले नकली चाचा भी उसी कैटेगरी के 'महान' इतिहासकार थे!


मोहनदास कर्मचन्द गाँधी जब अफ्रीका से भारत आये तो उनको मुट्ठी भर लोग ही जानते थे,काँग्रेस से भी उनका कोई सम्बन्ध नहीं था और आमलोग काँग्रेस को भी नहीं जानते थे । अंग्रेजों की मीडिया ने उनको उछालकर नेता प्रचारित कर दिया,और फर्जी इतिहासकार पढ़ाते आये हैं कि पूरा देश उनका अनुयायी था !उनकी तथाकथित लोकप्रियता के काल में भी देश का लगभग दस हजारवाँ हिस्सा उनका या काँग्रेस का अनुयायी था । देश के अधिकांश लोग चौरी−चौरा किस्म के काण्ड करने वाले नेता चाहते थे किन्तु अंग्रेजों और उनके काँग्रेसी पिट्ठुओं ने असली नेताओं को उभरते ही मार डाला । गाँधी द्वारा जबरदस्त विरोध के बावजूद सुभाष बाबू काँग्रेस के अध्यक्ष चुने गये थे,अर्थात् काँग्रेस के अन्दर भी गाँधी के अनुयायी अल्पमत में थे । तब ब्रिटिश लोकतन्त्र के प्रशंसक गाँधी काँग्रेस के अन्दर लोकतान्त्रिक चुनाव की हत्या करने के लिये आमरण अनशन पर बैठ गये!


काठ की हाण्डी दोबारा नहीं चढ़ती । देश के बहुत कम हिस्सों में गाँधी दोबारा जाने का साहस करते थे — ऐसा “स्वागत” होता था । मेरे क्षेत्र में केवल एक बार ही आये थे,उसके बाद चारों ओर के सभी गाँवों में पञ्चायतें बैठी थीं — गाँधी के  आयोजन में खानपान करने वालों को जाति से बहिष्कृत करने के लिये,किन्तु सारे काँग्रेसियों ने माँ−बहन की झूठी कसमें खाकर जाति बचायी!नोआखाली के दंगे में अत्याचार से पीड़ित हिन्दुओं को चाँटा खाने पर दूसरा गाल आगे करने की नसीहत देने गये तो हिन्दुओं की भीड़ ने ही उनपर आक्रमण कर दिया,चमचों ने कठिनाई से उनकी जान बचायी । सही बातें इतिहासकारों द्वारा दबा दी जाती है । जिस बिड़ला के निजी विमान पर अरविन्द केजरीवाल घूमते हैं उसी के खानदानी 'महात्मा' थे गाँधी । तब सोशल मीडिया नहीं थी,अतः फर्जी मीडिया और फर्जी हिस्ट्रीट्यूटों की पोल खुल नहीं पायी ।


एक चाँटा खाने पर दूसरा गाल बढ़ाने वालों को प्रस्तुत लेख अच्छा नहीं लगेगा,
ऐसे लोग जहाँ मिले उनको समझाने का एकमात्र तरीका यह है कि गाँधी के पक्ष में कुछ भी वे बोलें तो एक झन्नाटेदास चाँटा रसीद कर दें और दूसरा गाल बढ़ाने के लिये कहें । बातों से नहीं मानेंगे ।


भाजपाई गाँधीभक्तों को और भी जोरदार चाँटा चाहिये — वे न तो भाजपाई हैं और न गाँधीवादी ।


अत्याचार सहना अधर्म है । गाँधीवाद अधर्म है । अधर्म का वध वैष्णव−धर्म है,श्री विष्णु इसी कार्य के लिये अवतार लेते रहते हैं । अत्याचारियों के भय से घर में घुसकर भण्डारा के लड्डू तोड़ने वाले फर्जी वैष्णवों को यह बात रास नहीं आयेगी ।


गाँधीवाद अधर्म है । वीर सावरकर ने गाँधीवाद का नाश करने की सलाह दी थी,गाँधी का वध करने से मना किया था । गोडसे ने बात नहीं मानी क्योंकि गोडसे को विश्वास था कि गाँधीवाद का नाश करना उनके वश की बात नहीं है,पूरे संसार का साम्राज्यवादी “सिस्टम” भारत पर गाँधीवाद को थोपने के लिये कटिबद्ध था । किसी देश को गुलाम बनाये रखने के लिये सबसे अच्छा तरीका यही है कि उसे चुपचाप चाँटा खाते रहने की आदत डाल दी जाय ।


देशभक्त कौन?


जहाँ कहीं गाँधी के लिये “राष्ट्रपिता” शब्द देखें उसका विरोध करें,यह असंवैधानिक शब्द है । भारत के “राष्ट्रपिता” श्रीविष्णु हैं । सुभाष बाबू ने आजाद हिन्द सरकार के लिये काँग्रेस का समर्थन लेने के उद्देश्य से गाँधी को “राष्ट्रपिता” कहा था किन्तु तब भी समर्थन लेने में असफल रहे । तब “राष्ट्रपिता” किस खुशी में ? गाँधी को काँग्रेसपिता कहा जाय तो मुझे आपत्ति नहीं,हालाँकि असली काँग्रेसपिता तो एक अंग्रेज थे “ह्यूम” नाम के ।


काँग्रेसपिता ह्यूम ने काँग्रेस की स्थापना करते समय अपने उद्देश्य के बारे में साफ कहा था कि ब्रिटिश राज के विरुद्ध भारतीयों के आक्रोश को नियन्त्रित करने के लिये “सेफ्टी वाल्व” के तौर पर काँग्रेस की आवश्यकता है (ताकि १८५७ जैसा विद्रोह न हो) ।


तो फिर काँग्रेस और गाँधी−नेहरू देशभक्त कैसे?वे तो विदेशी हुकूमत के सेफ्टी वाल्व थे!देशद्रोही दलाल!


प्रेशर कूकर में “सेफ्टी वाल्व” का कार्य होता है अत्यधिक प्रेशर से कूकर को फटने से बचाने के लिये गैस का आपातकालीन निकास । इस गैस निकास को काँग्रेस का “स्वतन्त्रता आन्दोलन” कहते हैं ।


आजकल हिन्दुत्व के जागरण को नियन्त्रित करने के लिये भी सेफ्टी वाल्व बनाया गया है,किन्तु वह भिन्न विषय है ।
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प्रज्ञा ठाकुर ने चुनाव के दौरान गोडसे को देशभक्त कहा था । हाल वाले संसदीय बहस के दौरान उन्होंने गोडसे या किसी का नाम नहीं लिया था,DMK सदस्य ए⋅ राजा SPG बिल पर बोलते हुए बोल गये कि गाँधी जी की हत्या क्यों हुई तो प्रज्ञा ठाकुर ने कहा कि “आप देशभक्त का उदाहरण नहीं दे सकते” ।


उसके बाद से अभी तक प्रज्ञा ठाकुर को अपनी बात का अर्थ स्पष्ट करने के लिये किसी ने नहीं कहा,केवल आरोपों की बौछार लगी । किन्तु सच्चाई यही है कि प्रज्ञा ठाकुर का भाव यही था कि नाथूराम गोडसे देशभक्त थे ।


साध्वी प्रज्ञा एक ऐसा निवाला है जिसे भाजपा ने निगलना चाहा किन्तु निवाला गले में फँसकर रह गया — अब भाजपा न उगल सकती है और न निगल सकती है ।


आज के सेफ्टी वाल्व ने ही प्रज्ञा ठाकुर पर कार्यवाई की — बिना सफाई का अवसर दिये । न्यायालय भी बिना सुनवाई के दण्ड नहीं देती । भाजपा यह सफाई भी तो दे सकती थी कि राहुल गाँधी की विशेष सुरक्षा हटाने वाली बहस के प्रकरण में महात्मा गाँधी जैसे देशभक्त का उदाहरण नहीं देना चाहिये ।
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संस्कृत सीखेंगे तो पता चलेगा कि “पिता” का अर्थ होता है “पालनकर्ता” ।


राष्ट्र का पालन कौन करता है यह किसी शास्त्रज्ञ से पूछ लें । सृष्टि के जनक ब्रह्मा,पालक विष्णु,और संहारक शिव ।


संसार में राष्ट्र केवल एक है । क्योंकि राष्ट्र उसे कहते हैं जो चारों पुरुषार्थों द्वारा प्रजा के सर्वाङ्गीन रञ्जन का अवसर प्रदान करे । अतः राष्ट्र यदि एक से अधिक हो तो कलह,युद्ध आदि होंगे । विश्व के सम्पूर्ण इतिहास में भारत के सिवा दूसरा कोई राष्ट्र हुआ ही नहीं है जो चारों पुरुषार्थों को मौखिक तौर पर भी मान्यता दे,उनके द्वारा प्रजा का जो भरण करे वह केवल भारत है ।