शरीर की रोग रोधक क्षमता कम होने पर होता है हर्पीस, संक्रामक बीमारी है सावधानी जरूरी

 


 
लखनऊ
हर्पीस जोस्टर यानी शिंगल्स एक ऐसी बीमारी है, जिसमें हमारी त्वचा पर पानी भरे हुए छोटे-छोटे दाने निकल आते हैं। इस बीमारी में रोगी के शरीर के एक ही हिस्से में एक ही तरफ कई दाने एक साथ ही निकल आते हैं। कई रिसर्च में सामने आया है कि 40 के बाद इसकी आशंका ज्यादा होती है। इसमें भयंकर दर्द होता है।
संक्रामक बीमारी : यह बीमारी चिकन पॉक्स के वायरस वेरिसेला जोस्टर वायरस के कारण होती है। शरीर पर एक जगह दाने निकलने पर रोगी को दर्द और बुखार हो जाता है। यह एक संक्रामक बीमारी है, इसलिए सावधानी बरतना काफी जरूरी है। आमतौर पर यह बीमारी उसी व्यक्ति को होती है, जिसे पहले चिकन पॉक्स हो चुका होता है या फिर चिकन पॉक्स का एक्सपोजर हुआ हो। अगर यह वेरिसेला जोस्टर वायरस पहले से ही आपके शरीर में मौजूद है तो आप इस बीमारी से ग्रस्त हो सकते हैं। चिकन पॉक्स ठीक होने के बाद यह वायरस नर्वस सिस्टम में चला जाता है और वर्षों तक वहीं सुप्तावस्था में पड़ा रहता है।



इसलिए होती है ये बीमारी : यह बीमारी क्यों उभरती है, इसका कारण स्पष्ट तो नहीं है। ऐसा माना जाता है कि जब हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो जाती है तो यह वायरस नर्वस पाथवे यानी तंत्रिका मार्गों से होता हुआ हमारी त्वचा तक पहुंच जाता है। उम्र के साथ इसका खतरा बढ़ता जाता।



इस बीमारी के होने पर रोगी के शरीर के एक तरफ की त्वचा पर पानी वाले दाने निकलते हैं। इस वजह से रोगी को त्वचा में खुजली या दर्द या जलन या सुन्नपन या झनझनाहट की परेशानी होती है। इतना ही नहीं जिस जगह ये दाने निकलते हैं, वहां की त्वचा बेहद संवेदनशील हो जाती है और उसे छूने पर दर्द होता है। इन दानों के निकलने के पहले रोगी को दर्द होना शुरू हो जाता है। दर्द होने के कुछ दिनों के बाद उस जगह की त्वचा पर लाल-लाल फुंसियां निकलनी शुरू हो जाती हैं। धीरे-धीरे इन दानों में पानी भर जाता है। इसके अलावा बुखार, जोड़ों में दर्द, सिरदर्द, थकान आदि की शिकायत भी कई रोगियों को होने लग जाती हैं। फुंसियों में दर्द होना इस बीमारी का प्रमुख लक्षण है। कई रोगियों में यह दर्द काफी तेज होता है। अधिकांशत: यह दाने हमारे शरीर के ऊपरी हिस्से पर निकलते हैं। ये पीठ से छाती पर ही एक तरफ निकल आते हैं। कई बार ये दाने हमारी एक आंख या गर्दन या चेहरे के एक तरफ भी निकल आते हैं।


10-20 दिन लगते इस बीमारी को ठीक होने में : इस बीमारी के इलाज के लिए ऐंटि वायरस मेडिसिन एसाइक्लोविर दवा रोगी को दी जाती है ताकि उसके शरीर में उपस्थित वायरस नष्ट हो जाए। हर्पीस जोस्टर के इलाज के लिए मुख्य तौर पर यही दवा इस्तेमाल में लाई जाती है। इसके अलावा फैमसाइक्लोविर और वैलासाइक्लोविर दवाइयां भी रोगी को दी जा सकती हैं। इन दवाइयों के साथ रोगी को सपोर्टिव ट्रीटमेंट भी दिया जाता है। इसके तहत दानों पर लगाने के लिए लोशन या मलहम आदि का इस्तेमाल किया जाता है। इस बीमारी के ठीक होने में दो से तीन सप्ताह यानी 10 से 20 दिन लगते हैं।


चूंकि इस बीमारी में कई बार रोगी को बहुत ज्यादा दर्द होता है तो ऐसी स्थिति में दर्द से बचने के लिए जोस्टावैक्स नामक वैक्सीन दिया जाता है। अमेरिका में 55 साल की उम्र के बाद से हर व्यक्ति को यह वैक्सीन दिया जाता है ताकि इस बीमारी से बचा जा सके। इस वैक्सीन के लेने से बीमारी होने की आशंका कम हो जाती है।