अहम फैसला:हाईकोर्ट में अर्जी देने के लिए सत्र न्यायालय में अर्जी खारिज होना जरूरी नहीं

 


प्रयागराज. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रदेश में अग्रिम जमानत के मामले में अपने महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि जिला न्यायालय अथवा हाईकोर्ट दोनों में से किसी में भी दाखिल की जा सकती है। हाईकोर्ट में अर्जी दाखिल करने के लिए जरूरी नहीं है कि पहले सत्र न्यायालय में अर्जी खारिज की गई हो। कोर्ट में कहा है कि हाईकोर्ट और सत्र न्यायालय दोनों को दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 4 38 में बराबर अधिकार हैं। आरोपी वादकारियों को दोनों में से किसी भी न्यायालय में अग्रिम जमानत के लिए सीधे अर्जी दाखिल करने का अधिकार है।
यह फैसला न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा ने विनोद कुमार की जमानत अर्जी को खारिज करते हुए दिया है। अर्जी पर वरिष्ठ अधिवक्ता डी.एस. मिश्र, इमानुल्ला खान राज्य सरकार की तरफ से एजीए आई.पी. श्रीवास्तव व विकास सहाय ने पक्ष रखा। कोर्ट ने कहा कि प्रदेश अग्रिम जमानत के प्रावधान संविधान द्वारा दी गई वैयक्तिक स्वतंत्रता एवं अनावश्यक उत्पीड़न की गारंटी के तहत लागू किया गया है। यह निराधार आरोपों पर उत्पीड़न से बचने के लिए है। याची के खिलाफ 11जुलाई 19 एफआईआर दर्ज करायी गयी और 16 अक्तूबर को सत्र न्यायालय ने अर्जी खारिज कर दी। कोर्ट ने अग्रिम जमानत पर छोडे जाने का ठोस आधार न पाये जाने पर अर्जी खारिज कर दी।
कोर्ट ने कहा कि अग्रिम जमानत संबंधित न्यायालय द्वारा आरोपी को समन जारी किए जाने तक प्रभावी रहेगी। धारा 173 उपखंड दो दंड प्रक्रिया संहिता के तहत दाखिल रिपोर्ट पर कोर्ट संज्ञान लेते हुए आरोपी को सम्मन जारी करती है। कोर्ट ने कहा कि आरोपी चाहे तो नियमित जमानत ले सकता है। सत्र न्यायालय में अर्जी खारिज होने पर ही हाईकोर्ट में अर्जी दाखिल की जा सकती है, यह सही नहीं है। कुछ मामलों में कोर्ट ने कहा था कि पहले अधीनस्थ न्यायालय में जायें। वहां अर्जी खारिज होने के बाद हाईकोर्ट में अर्जी दाखिल करे। इस फैसले से आपराधिक मामले में गिरफ्तारी से बचने के लिए आरोपी सीधे हाईकोर्ट में अर्जी दाखिल कर सकता है। पहले सत्र न्यायालय में अर्जी दाखिल करना जरूरी नहीं है।