केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) ने एक मेडिकल कॉलेज का कथित तौर पर पक्ष लेने पर भ्रष्टाचार के एक मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति एस एन शुक्ला को नामजद किया है और उनके लखनऊ स्थित आवास पर छापेमारी की है। अधिकारियों ने शुक्रवार को बताया कि एजेंसी ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ के न्यायाधीश शुक्ला के साथ छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश आई एम कुद्दूसी, प्रसाद एजुकेशन ट्रस्ट के भगवान प्रसाद यादव और पलाश यादव, ट्रस्ट तथा निजी व्यक्तियों भावना पांडेय और सुधीर गिरि को भी मामले में नामजद किया है।
आरोपियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 120 बी (आपराधिक षड्यंत्र) और भ्रष्टाचार रोकथाम कानून के प्रावधानों के तहत मामला दर्ज किया गया है। अधिकारियों ने बताया कि प्राथमिकी दर्ज करने के बाद सीबीआई ने लखनऊ, मेरठ और दिल्ली में कई स्थानों पर छापेमारी शुरू कर दी।
सीबीआई ने शुक्रवार को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति एसएन शुक्ला और छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के अवकाश प्राप्त न्यायमूर्ति आईएम कुद्दुसी समेत छह लोगों के नई दिल्ली, लखनऊ और मेरठ स्थित ठिकानों पर छापेमारी की। यह छापा प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों को अनुचित लाभ पहुंचाने से जुड़े मामले से संबंधित है। छापे में चल-अचल संपत्तियों के अलावा मामले से जुड़े कागजात बरामद हुए हैं। न्यायमूर्ति शुक्ला के लखनऊ के रायबरेली रोड पर स्थित वृंदावन कॉलोनी के आवास और न्यायमूर्ति कुद्दुसी के लखनऊ में हजरतगंज और नई दिल्ली में ग्रेटर कैलाश स्थित आवास पर मारे गए।
सीबीआई ने एंटी करप्शन विंग-द्वितीय के डीएसपी मुकेश कुमार की जांच रिपोर्ट के आधार पर मुकदमा दर्ज किया गया है। इसमें न्यायमूर्ति एसएन शुक्ला, अवकाश प्राप्त न्यायमूर्ति आईएम कुद्दुसी, नई दिल्ली निवासी भावना पांडेय, गोमती नगर लखनऊ निवासी बीपी यादव व उनके पुत्र पलाश यादव, मेरठ निवासी सुधीर गिरि, बंथरा लखनऊ स्थित मेसर्स प्रसाद एजुकेशनल ट्रस्ट और अन्य अज्ञात व्यक्तियों को आरोपी बनाया गया है। जस्टिस शुक्ला पर एमबीबीएस पाठ्यक्रम में दाखिले के लिए कथित तौर पर प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों का पक्ष लेने का आरोप है।
कार्यरत जज के खिलाफ पहला मामला
उच्चतम न्यायालय के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) न्यायमूर्ति रंजन गोगोई ने 31 जुलाई 2019 को आदेश जारी कर सीबीआई को इलाहाबाद उच्च न्यायालय में कार्यरत न्यायमूर्ति एसएन शुक्ला के खिलाफ भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत मुकदमा दर्ज करने की अनुमति दी थी। यह पहला मामला है जब सीजेआई ने एक जांच एजेंसी को किसी कार्यरत न्यायमूर्ति के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की अनुमति दी।
जांच में कदाचार के दोषी मिले
तत्कालीन सीजेआई न्यायमू्र्ति दीपक मिश्रा ने भी जस्टिस शुक्ला के खिलाफ जांच की सिफारिश की थी। उस समय उच्चतम न्यायालय द्वारा गठित एक आंतिरक जांच कमेटी ने न्यायमूर्ति शुक्ला को गंभीर न्यायिक कदाचार का दोषी पाया था। कमेटी ने इस बात की जांच की थी कि न्यायमूर्ति शुक्ला ने क्या वास्तव में उच्चतम न्यायालय के आदेश का उल्लंघन करते हुए प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों में विद्यार्थियों के प्रवेश की समय-सीमा बढ़ा दी थी?