प्रशासक भी सन्त-महात्मा होता है-भगवान अवधूत राम


सफाई अभियान में सबकी हिस्सेदारी जरूरी
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वाराणसी/जौनपुर । काशी के पड़ाव स्थित अवधूत आश्रम के साक्षात् ईश्वरीय रूप के आस्था के सन्त भगवान अवधूत राम उन कुष्ठरोगियों का उपचार खुद अपने हाथों से करते थे, जिन्हें उनके सन्तान ही रात के अंधेरे में आश्रम के बाहर छोड़ कर चले जाते थे ।


प्रशासक भी सन्त महात्मा
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वैसे तो उनका आगमन वर्ष 1980 के आसपास मुजफ्फरगंज स्थित जेसी बाल मंदिर के कार्यक्रम में हुआ था । समाजसेवियों को आईना दिखा गए थे लेकिन जिस घटना का उल्लेख लिया जा रहा है, वह काशी के ही आसपास किसी गांव के कार्यक्रम के सम्बंध में उनके भक्तों ने बताया था।  घटना यह थी कि वे किसी गांव में प्रवचन के लिए गए थे । पंडाल आदि लगा था । दूसरे दिन एक दरोगा आकर  आयोजकों से बोला-कल डीएम का दौरा होगा । गांव वालों की सभा भी होगी । अतः पंडाल हटा लिया जाए ।


खुद अवधूत राम ने पंडाल हटवाया

दरोगा की बात का भक्त गण विरोध करने लगे । महासंग्राम की नौबत आ गई । यह खबर भगवान अवधूत राम को लगी । तब वे बोले कि पंडाल हटा लिया जाए । क्योंकि हमारे प्रशासक पर भी पूरी जनता के कुशल क्षेम का दायित्व होता है । वह भी अपने आप में सन्त-महात्मा ही होता है ।


डीएम और सन्त की जिम्मेदारी एक ही है
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अवधूत राम ने कहा कि सन्त भी लोगों की भलाई के लिए प्रवचन देता है । एक दिन कार्यक्रम नहीं हुआ या सन्त असंतुलित हुआ तो थोड़े से भक्तों का अहित होगा और डीएम डिस्टर्ब हुआ तो पूरे जिले का अहित होगा । उनके इस कथन पर पंडाल हट गया ।


डीएम खुद मिलने आए ।
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जैसा कि भक्तों ने बताया कि उस समय काशी के डीएम संभवतः भूरेलाल ही थे । उनकी सख्ती की खूब चर्चा थी । सरकारी गाड़ी इस्तेमाल पर अपने ही घरवालों पर आर्थिक दंड लगा देते रहे । जब उन्हें अवधूत राम के उक्त कथन का पता चला तो वे खुद अवधूत राम के पास आए तथा उनके प्रति आभार प्रकट किया ।


प्रशासक से अपेक्षा 
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प्रायः जनता डीएम, एसपी के यहां फरियादी बन कर ज्यादा जाती है । लोगबाग उन्हें जिले का पिता, मालिक और राजा तक कहते सुने जाते हैं । इसलिए यदि प्रशासक किसी काम में जनता का आह्वान करें तो उसमें भागीदारी करनी भी चाहिए ।


सफाई अभियान
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इन दिनों मुख्यमंत्री के निर्देश पर डीएम सफाई अभियान का नेतृत्व हर जिले में कर रहे हैं । यहां भी डीएम दिनेश कुमार सिंह अल-सुबह सफाई अभियान पर निकल रहे हैं । डीएम का उद्देश्य जागरूकता पैदा करने के लिए है न कि झाड़ू लगाने के लिए । हर नागरिक का दायित्व है कि वह अपने आसपास वाह्य और आंतरिक सफाई रखे । यानि घर में भी और घर के बाहर भी ।


21वीं सदी में खुद जागरूक होना होगा
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कोई कहे तब हम जागरूक हों, इससे अच्छा अपने मन के कहने से जागरूक हो जाना चाहिए । प्रशासक मुहल्ले टोले में घूमे तो उसे लगे भी कि शहर और गांव के लोग जागरूक है । यदि प्रशासक को पिता कहते हैं तो यह ठीक नहीं कि पिता झाड़ू लगाए और सन्तान गंदगी फैलाए ।