शराब काण्ड के दौरान तैनात एक एसआई, उनका आवास, हाइवे और साहब का कनेक्शन

 


तमकुहीराज, कुशीनगर। तरयासुजान शराब कांड के बाद उसके जद में आये तमकुहीराज पुलिस चौकी पर तैनात रहे एक एसआई से तरयासुजान थाने के प्रभारी का कनेक्शन चर्चा में सुमार है। हो भी क्यों न साहब थाना परिसर में निवास करने के बजाय थाने से लगभग 16 किमी. की दूरी पर तमकुहीराज में हाइवे के किनारे निवास करते है। जहां देर शाम को अपने लोगों के साथ बैठकी शुरू होने की बात आम हो चली है।


सूत्र बताते है कि तमकुहीराज पुलिस चौकी पर तैनात रहे एक एसआई हाइवे के किनारे अपना आवास बना रखा था। उसी दौरान तरयासुजान में हुई शराब कांड ने दोषी और निर्दोष सभी को अपने जद में ले लिया था। यह साहब भी उस दौरान अपने वरिष्ठ अधिकारियों के शिकार हुए थे। फिर भी अपने मैनेज व्यवस्था के कारण अधिकारियों के कार्यवाही के जद में आने के बाद भी चौकी पर बने रहे और चौकी से लगायत हाइवे का संचालन करते रहे। बात निकली और अखबार के पन्नों तक पहुँची। फिर भी इस एसआई पर असर नही हुआ, तब किसी ने इस बात को ऊपर तक पहुँचाया और साहब अपने नये तैनाती स्थल को रवाना हुए। लेकिन उनका तमकुहीराज से मोह भंग नहीं हुआ। बीच बीच मे उनका आवास कई अन्य बातों, शराब तस्करों के साथ बैठकी को लेकर चर्चा में रहा। तरयासुजान में पोस्टिंग के बाद जब प्रभारी निरीक्षक कमलेश सिंह को इस बात की जानकारी हुई तो वे सीधे उस एसआई से सम्पर्क कर हाइवे किनारे उस आवास को अपना आवास बना लिया। फिर स्थानीय जानकारी प्राप्त कर मैनेज के खेल को आगे बढ़ा हाइवे के तस्वीर को अपने मन के आंखों से देखने लगें। धीरे धीरे साहब का आवास, हाइवे, और ...... बैठकी में तब्दील हो चला।




राहुल सिंह को लोग कर रहें याद



चर्चाओं के क्रम में लोग यह कहने से गुरेज नहीं कर रहे कि प्रदेश सरकार के एक प्रभावशाली मंत्री के तथाकथित रिश्तेदार राहुल सिंह ने तस्करी का सारा रिकार्ड तोड़ दिया था। उनके कार्यकाल में बरामदगी और पुलिस की आंशिक सफलता भी एक दुर्घटना हुआ करती थी। लेकिन उनके जाने और कमलेश कुमार सिंह के तैनाती के बाद वह तस्वीर और धुंधली हो चली। बीच में बिहार सीमा पर स्थित बहादुरपुर पुलिस चौकी के प्रभारी राजीव कुमार सिंह ने तस्करों और तस्करी के खिलाफ हाथ खोल तस्करों और अपने थाना प्रभारी से दुश्मनी मोल ली, परिणाम स्वरूप उनकी बिदाई हो गयी।



तमकुहीराज हाइवे पर पकड़ी गये गोवंश का राज


बीते 5 दिसम्बर को तमकुहीराज में पकड़े गये 49 राशी गोवंश में भी तरयासुजान थाने या फिर तमकुहीराज पुलिस चौकी का कोई खास भूमिका नहीं रही। कारण उक्त गोवंश तस्करी की की सूचना पटहेरवा थाने पर तैनात एक चर्चित सिपाही ने सीओ तमकुहीराज को दिया। सीओ नीतीश कुमार सिंह ने सक्रियता दिखाई और कुछ पुलिस कर्मियों के सहयोग से उन्हें पकड़ तरयासुजान पुलिस के हवाले कर दिया। लेकिन तरयासुजान पुलिस वाहवाही के साथ पुलिस कप्तान से इनाम भी पा लिया। जबकि उसमे चर्चा कुछ और भी हो रही है कि तस्करों के साथ एक लग्जरी वाहन से पकड़े गए तस्करों के पास से कुछ धन भी प्राप्त हुआ था। लेकिन लिखापढ़ी में पुलिस ने उसकी चर्चा कही नहीं की। जबकि गौवंशों की सुपुर्दगी पर भी सवाल उठ रहे है।


 


"तरयासुजान थाना" तब और अब 


आजादी के बाद से तरयासुजान थाने पर पहले उन्हें थानाध्यक्षी सौपी जाती थी, जिनका नाम सुनते ही कुख्यात अपराधी व तस्कर थर्रा जाते थे, लेकिन इधर लगभग डेढ़ दशकों में जो कुछ होता आ रहा है, उसने सबका मायने ही बदल कर रख दिया है। स्थानांतरण एवं पोस्टिंग में सत्ता का हस्तक्षेप, अपने कार्यशैली को सबसे बेहतर बताने की होड़ में मैनेज का खेल, जातीय समीकरण और बहुत कुछ संकेत करते है। वहीं समाज के कुछ चेहरे भी समय समय पर अपने विचारों में बदलाव के साथ पक्ष और विपक्ष के भूमिका में दिखते तो है, लेकिन परिस्थितियों के हिसाब से स्वयं को ढ़ाल लेना ही बेहतर समझते है। लिहाजा बिहार प्रान्त के सीमा से लगे तरयासुजान थाने की तस्वीर भी वक्त के साथ सतरंगी रंगों में सराबोर होती चली आ रही है। आज भी यहां की तस्वीर ठीक उसी तरह है, बस परिवर्तन इतना हुआ है कि तब पुलिस का हनक अपराधियों एवं तस्करों पर दिखता था, और आज आम आदमी पर....?



नहीं उठा सीओ का सरकारी व निजी नम्बर


उधर पुलिस का पक्ष जानने के लिए पुलिस क्षेत्राधिकारी तमकुहीराज नीतीश कुमार सिंह के सरकारी व निजी दोनों नम्बरों पर फोन किया गया। घण्टी बज रही थी, लेकिन वे फोन नहीं उठा रहे थे। फिर पुलिस कप्तान विनोद कुमार मिश्र के सरकारी नम्बर पर फोन किया गया। लेकिन वह भी नहीं उठा। जिससे पुलिस का पक्ष नहीं लिया जा सका।