भारतीय ज्योतिष और राजयोग

भारतीय ज्योतिष और राजयोग


     सारे  योगों के राजा या समन्वय को ही हम राजयोग की संज्ञा दे सकते हैं चुकी इसमें प्रत्येक प्रकार के योग की कुछ न कुछ विशेषता अवश्‍य मिल जाती है।अलग-अलग सन्दर्भों में राजयोग के अलग-अलग विभिन्न्न मायने मतलब हैं।ऐतिहासिक रूप में योग की अन्तिम अवस्था समाधि' को ही 'राजयोग' कहते थे किन्तु आधुनिक सन्दर्भ में हिन्दुओं के छः दर्शनों में से एक का नाम 'राजयोग' (या केवल योग) है परंतु ज्योतिष में राजयोग का अर्थ होता है कुंडली में ग्रहों का इस प्रकार से संबंध बनाना कि सफलताएं, सुख, पैसा, मान-सम्मान आसानी से प्राप्त हो या उचित्त समय आने पर स्वफलित हो।


          ऐसे राजयोग तो कई प्रकार के हैं लेकिन ज्योतिष के प्राचीन ग्रंथों में कुल 32 प्रकार के मुख्य राजयोग बताए गए हैं। जिस मनुष्य की कुंडली में 32 प्रकार के सभी योग पूर्ण रूप से घटित हो जाते हैं, वह मनुष्य चक्रवर्ती सम्राट बनता है। इसमें नीचभंग राजयोग भी प्रमुख माने जाते हैं। राजयोग होने पर व्यक्ति को उच्चपद, मानसम्मान, धन तथा अन्य प्रकार की सुखसंपत्ति प्राप्त होती हैं। अगर जन्म कुंडली के नौवें या दसवें घर में सही ग्रह मौजूद रहते हैं तो उन परिस्थितियों में राजयोग का निर्माण होता है। जन्म कुंडली में नौवां स्थान भाग्य का और दसवां कर्म का स्थान होता है। कोई भी व्यक्ति इन दोनों घरों की वजह से ही सबसे ज्यादा सुख और समृद्धि प्राप्त करता है। राजयोग का आंकलन करने के लिए जन्म कुंडली में लग्न को आधार बनाया जाता है। कुंडली के लग्न में सही ग्रह मौजूद होते हैं तो राजयोग का निर्माण होता है।


            कुंडली में जब शुभ ग्रहों का योग बनता है उसके आधार पर राजयोग का आंकलन किया जाता है। कुंडली के किसी भी भाव में चंद्र-मंगल का योग बन रहा है तो जीवन में धन की कमी नहीं होती है, मान-सम्मान मिलता है, सामाजिक प्रतिष्ठा बढ़ती है। कुंडली में राजयोग का अध्ययन करते वक़्त अन्य शुभ और अशुभ ग्रहों के फलों का भी अध्ययन जरुरी है। इनके कारण राजयोग का प्रभाव कम या ज्यादा हो सकता है।


       राजयोग वे ग्रह स्थितियां हैं जिनसे व्यक्ति विपुल धनसंपदा पद गौरव सुख और ऐश्वर्य पाता है। विपरीत राजयोग में व्यक्ति को प्राप्तियां तो होती हैं लेकिन वह उनका आनंद कम ही ले पाताहै।जिस किसी व्यक्ति की कुंडली में ये ज्योतिषीय योग बनता है तो व्यक्ति राज्याधिकारी बनता है। जब कुंडली में 2, 3, 5, 6, 8, 9 तथा 11, 12 में से किसी स्थान में बृहस्पति की स्थिति हो और शुक्र 8वें स्थान में हो तो ऐसी ग्रह स्थिति में जन्म लेने वाला जातक राज्याधिकारी बनता है। कभी-कभी हम लोग किसी साधारण परिवार में जन्मे बालक के राजसी लक्षण देखते हैं जो इसी योग के कारण बनते हैं। जब भी मनुष्य कोई कोशिश करता है या किसी चीज़ की इच्छा करता है तो उसके प्रयत्न विभिन्न योगों के अनुसार ही विकसित होते हैं। 


निम्नलिखित स्थितियों में राजयोगों का सृजन होता है:  


१. जब किसी व्यक्ति की कुंडली में ग्रह एक-दूसरे की राशि में होते हैं तो शुभ फल प्राप्त होते हैं। 
२. जब किसी व्यक्ति की कुंडली में ग्रह एक-दूसरे से दृष्टि संबंध में हो तो शुभ फल प्राप्त होते हैं। 
३. कुंडली में ग्रहों की परस्पर युति होने पर शुभ फल प्राप्त होते हैं। 
४. कुंडली में एक ग्रह दूसरे ग्रह को संदर्भित करता हो तो शुभ।  
५. नवम और पंचम स्‍थान के अधिपतियों के साथ बलवान केन्‍द्राधिपति का संबंध शुभफलदायक होता है। इसे राजयोग कारक भी बताया गया है।
६. योगकारक ग्रहों (यानी केन्‍द्र और त्रिकोण के अधिपतियों) की दशा में बहुधा राजयोग की प्राप्ति होती है। योगकारक संबंध रहित ऐसे शुभ ग्रहों की दशा में भी राजयोग का फल मिलता है।-आचार्य रुपाली सक्सेना 9870692295