रोटी, कपड़ा और मकान की तरह बेसिक स्वास्थ्य और बेसिक शिक्षा सबकी जरूरत है-पूर्व डीजीपी सुलखान सिंह

मैं केन्द्रीय विद्यालय, नवोदय विद्यालय या ऐसे elitist स्कूल खोलने के खिलाफ हूँ। इससे समाज में विषमता पैदा हो रही है। इन्टरमीडिएट तक की शिक्षा (प्राथमिक शिक्षा) सबके लिए और लगभग एक ही स्तर की उपलब्ध कराई जानी चाहिए। अगर सरकार ऐसे स्कूल सबके लिए नहीं खोल सकती तो उसे ऐसा एक भी स्कूल नहीं खोलना चाहिये। सार्वजनिक धन से चुनिंदा लोगों को लाभान्वित करना भेदभाव पूर्ण है, अन्याय पूर्ण है और नैतिक रूप से गलत है।


केन्द्र सरकार यह कहकर अपना पल्ला नहीं झाड़ सकती कि शिक्षा राज्यों की जिम्मेदारी है। इस आधार पर केन्द्र सरकार सामाजिक/शैक्षणिक विषमता नहीं पैदा कर सकती है। 


मेरा कहना है कि सरकारी धन से उसी तरह के विद्यालय बनाये जाने चाहिए जो सबके लिए बनाये जा सकें। सरकारी धन पर सबका हक बराबर है, मात्र उन्हीं का हक नहीं है जो पढ़ने में topper हैं। 


रोटी, कपड़ा और मकान की तरह बेसिक स्वास्थ्य और बेसिक शिक्षा सबकी जरूरत है। यह सबको एक स्तर की और सस्ते (affordable price) में उपलब्ध कराना सरकार की जिम्मेदारी है। यह नहीं किया जा सकता कि सस्ता राशन उसी को दिया जायेगा जो परीक्षा में मेरिट लिस्ट में ऊपर होंगे। इन आवश्यक वस्तु और सेवाओं को प्रदान करने में किसी भी आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता।


शिक्षा संविधान की समवर्ती सूची में है। अतः केन्द्र सरकार को इस तरह की elitist कार्यवाही नहीं करनी चाहिए। दुर्भाग्यपूर्ण है कि बुद्धिजीवी वर्ग और मीडिया भी इस प्रवृत्ति का पोषण ही कर रहा है।