समाजवादी पार्टी (एसपी) के राष्ट्रीय अध्यक्ष व पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के इंसेफ्लाइटिस को लेकर लगाए गए आरोपों का सरकार ने आंकड़े पेश कर जवाब दिया है। सरकार ने दावा किया है कि 38 जिलों में इंसेफ्लाइटिस का असर कम हुआ है। चार दशक से पूर्वांचल के मासूमों के लिए काल बनी इंसेफ्लाइटिस के मामलों में 35 फीसद की कमी आई है। इससे होने वाली मौतों के आंकड़े में भी 65 प्रतिशत की कमी आई है।सरकारी प्रवक्ता ने दावा किया कि पूर्वांचल में 40 लाख बच्चों का टीकाकरण हुआ है। घर घर जाकर दस्तक अभियान की शुरुआत की। एक्यूट इंसेफ्लाइटिस सिंड्रोम (एइएस) से होने वाली मृत्यु दर सिर्फ 3.73 प्रतिशत है। इस बीमारी से इलाज के लिए अस्पताल में पर्याप्त वॉर्मर मौजूद हैं। वर्ष 2016 में एईएस के 3911 मरीज भर्ती किए गए जिनमें से 641 की मौत हुई। वर्ष 2017 में मरीजों की तादाद 4724 हुई, जिनमें 655 की मौत हुई। वर्ष 2018 में 3077 मरीज भर्ती हुए और मौत 248 की हुई। इसी प्रकार वर्ष 2016 में जापानी इंसेफ्लाइटिस (जेइ) की वजह से 74 की मौत हुई। वर्ष 2017 में भी इतनी ही मौत हुई। वर्ष 2018 में केवल 30 की ही मौत इस बीमारी से हुई है।बता दें कि सोमवार को सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश ने प्रदेश सरकार पर गोरखपुर में बच्चों की मौत का आंकड़ा छिपाने का आरोप लगाया था। उन्होंने कहा कि गोरखपुर में दिमागी बुखार से ग्रस्त बच्चों को डॉक्टर दूसरी बीमारी बताकर गलत इलाज कर रहे हैं। यह सब इसलिए हो रहा है ताकि जेई-एईएस के मरीजों की संख्या कम दिखाई जा सके। अखिलेश ने दावा किया कि जनवरी 2019 से अक्टूबर 2019 के बीच करीब 1500 बच्चों की मौत हुई। उन्होंने अपने दावे के समर्थन में करीब दो हजार बच्चों की जांच रिपोर्ट एक वीडियो के माध्यम से दिखाई और पूरे मामले की जांच हाइ कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के जज से कराने की मांग की।अखिलेश यादव ने इससे पहले गोरखपुर में एक हजार से अधिक बच्चों की मौत का दावा किया था। इस पर उप मुख्यमंत्री डॉ. दिनेश शर्मा ने बच्चों की सूची देने के लिए कहा था। इसी के बाद सोमवार को अखिलेश यादव ने करीब दो हजार पीड़ित बच्चों की जांच रिपोर्ट मीडिया के सामने पेश की। इसमें से 1500 बच्चों की मौत का दावा किया। उन्होंने कहा कि कोटा के अस्पताल में बच्चों की मौत की तो सरकार को फिक्र है, लेकिन गोरखपुर में बच्चों की जान जा रही है, इसकी फिक्र नहीं है। सरकार पीडि़त बच्चों की संख्या 500 बता रही है। इस रोग का सही आंकड़ा जनता के सामने न आए इसलिए रोगी बच्चों को दूसरी बीमारी बताई जा रही है।