जाने माता सीता ने किस क्षेत्र में पितरों का किया था तर्पण??


सीता जयंती की पूर्व संध्या पर गोष्ठी
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मिर्जापुर । मर्यादापुरुषोत्तम भगवान श्रीराम की अर्धांगिनी माता सीता के प्राकट्य की तिथि फाल्गुन कृष्ण पक्ष की अष्टमी के अनुसार रविवार को है । इस उपलक्ष्य में पूर्व संध्या पर शनिवार को डॉ भवदेव पांडेय शोध संस्थान में संपन्न आध्यात्मिक बैठक में 'धरती से सीता जी के जन्म' विषय की वैज्ञानिकता पर वैज्ञानिक दृष्टि से चिंतन किया गया ।
     इस संबन्ध में आध्यात्मिक विषयों में रुचि रखने वाले सलिल पांडेय ने कहा कि सीता कृषि भूमि में हल जोतने से पड़ने वाली रेखा को कहते हैं । धरती माता हैं तो आकाश पिता । आकाश की बून्दों से कृषि भूमि से जीवनदायिनी फसलें जो उत्पादित होती हैं, वहीं माता सीता का प्रसाद है । सलिल पांडेय ने कहा कि माता ही घर के भण्डारण की अधिष्ठात्री होती है । जनक जी जब सूखे की वजह से यज्ञ कर रहे थे तो सोने के घड़े से उनका हल टकराया था।  धरती में सोना, जल, कृषि उत्पाद तथा अन्यान्य पदार्थ होते हैं । अतः धरती के धन-धान्य की देवी सीता जी होती हैं ।
     सलिल पांडेय ने कहा कि माता सीता विंध्य क्षेत्र में भगवान श्रीराम के साथ लंका विजय के बाद आईं तथा यहीं उन्होंने भी श्रीराम के साथ अपने पूर्वजों का तर्पण किया । विंध्य क्षेत्र उन्होंने इसलिए चयनित किया क्योंकि विन्ध्य धाम की भूमि में अनन्त ऊर्जा और सम्पदा हैं । यहां उन्होंने अष्टभुजा पर कुंड बनाकर स्नान किया जो सीताकुंड के नाम से आज भी जाना जाता है।  यहां क्वार महीने में पितृपक्ष की नवमी तिथि को महिलाएं अपने परिवार की महिला पितरों को तर्पण देती हैं । सीता जी भूमि से प्रकट होने के नाते भूमिजा कहीं जाती हैं । भूमिजा लक्ष्मी जी को भी कहते हैं इसलिए इस नगर को लक्ष्मी का नगर कहा जाता है । दक्षिण दिशा में पर्वत के नीचे सम्पदा और उत्तर में गंगा की वजह से कृषि जहां होगी, वहां धन-धान्य की प्रचुरता रहती है। 
    गोष्ठी में साकेत पांडेय, जलज नेत, प्रियांशी जायसवाल, जूली मोदनवाल आदि ने भी विचार व्यक्त किए ।-


  सलिल पांडेय, मिर्जापुर ।