काशी वि‍श्‍वनाथ-ज्ञानवापी मस्‍जि‍द केस : मुस्‍लि‍म पक्ष नहीं पेश कर सका हाईकोर्ट का ऑर्डर, डेढ़ घंटे चली बहस..


वाराणसी। काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्‍जि‍द कानूनी वि‍वाद में सिविल कोर्ट में आज नया मोड़ आ गया। प्रार्थना पत्र 266ग की सुनवाई सिविल कोर्ट में किये जाने को उच्च न्यायालय द्वारा स्थगित बता रहे सुनी सेन्ट्रल वक्फ बोर्ड लखनऊ के अधिवक्ता हाईकोर्ट का ऑर्डर न्यायालय में पेश नहीं कर सके। इसपर न्यायालय ने प्रतिवादी संख्या 1 और सुन्नी सेन्ट्रल वक्फ बोर्ड के अधिवक्ता के प्रार्थना पत्र को खारिज करते हुए ज्ञानवापी मस्जिद के पुरातत्विक सर्वेक्षण (प्रार्थना पत्र संख्या 266 ग) की सुनवाई शुरू कर दी है। सुनवाई के पहले दिन स्वयंभू लॉर्ड विशेश्वर ज्‍योति‍र्लिंग के वाद मित्र विजय शंकर रस्तोगी ने इस मामले पर डेढ़ घंटे तक कोर्ट में बहस की।


     समय ज़्यादा न होने पर कोर्ट ने इस मामले में बहस सुनने के लिए अगली तारीख 18 मार्च की नियत की है। इस पूरे मामले पर विस्तार से बात करते हुए स्वयंभू लार्ड विशेश्वर ज्‍योति‍र्लिंग के वाद मित्र विजय शंकर रस्तोगी ने बताया कि आज काशी ज्ञानवापी विश्वनाथ मंदिर के मामले में न्यायलय में जो वाद था उसमे वादी की तरफ से यह प्रार्थना पत्र दिया गया था कि पूरे ज्ञानवापी परिसर का पुरातात्विक सर्वेक्षण कराया जाए। उन्‍होंने तर्क दि‍या कि‍ इस स्थान के पुरातात्विक, ऐतिहासिक और प्रागैतिहासिक महत्व के साक्ष्य वहां मौजूद हैं। इस स्थान पर सतयुग से विशेश्वर का मंदिर स्थापित था।


     स्वयंभू विशेश्वर ज्योतिर्लिंग जिसकी महानता का वर्णन स्कन्द पुराण के काशीखण्ड में भी वर्णिंत है। वाद मि‍त्र के अनुसार उस स्थान का विवाद इसलिए है कि औरंगज़ेब द्वारा 1669 में इसे गिराने का फरमान जारी किया था और पूरे विशेश्वर मंदिर के एक अंश पर यह वर्तमान ढांचा (ज्ञानवापी मस्जिद) बनवा दिया गया है, जो औरंगज़ेब के फरमान से न होकर बल्‍कि‍ यहां के स्थानीय मुसलामानों द्वारा बनवा दिया गया है। इसके लिए हिन्दू पक्ष की तरफ से इसे प्राप्त करने के लिए, इसमें दर्शन पूजन के लिए और यह घोषित करने के लिए यह स्वयंभू विशेश्वर मंदिर का एक अंश है। इसके लिए आज अदालत में वाद नियत थी।


    वाद मित्र विजय शंकर रस्तोगी ने बताया कि आज प्रर्थना पत्र संख्या 266ग, जो कि वादी पक्ष की तरफ से दिया गया था कि पूरे ज्ञानवापी परिसर का पुरातात्विक सर्वेक्षण और निरीक्षण पुरातत्व वि‍भाग द्वारा करा लिया जाए। उसी पर आज सुनवाई की तारीख थी। वाद मित्र ने बताया कि प्रतिवादी पक्ष के प्रतिवादी संख्या एक के द्वारा आज भी यह प्रार्थना पत्र दिया गया है और पुरानी बातों को दोहराया गया।


   प्रति‍वादी की ओर से अदालत में कहा गया कि‍ माननीय इलाहाबाद उच्च न्यायलय में उनके द्वारा एक रिट याचिक दाखिल की गयी है, जिसमे उच्‍च न्यायालय ने वाराणसी न्यायालय में लंबित इस वाद की कार्रवाई को स्थगित करने का आदेश दिया है। इस पर वाद मित्र विजय शंकर रस्तोगी ने बताया कि ऐसा कोई आदेश माननीय उच्च न्यायलय की वेब साइट पर अभी तक अपलोड नहीं किया गया है।


    इसी प्रकार का एक प्रार्थना पत्र सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड लखनऊ के अधिवक्ता ने भी दिया है, जिसमे उन्होंने एक समाचार पत्र का भी हवाला दिया है, लेकिन माननीय न्यायालय ने इन दोनों बातों को आज की सुनवाई में नहीं माना।


    अदालत ने प्रतिवादी गण को माननीय उच्च न्यायलय के आदेश की प्रमाणित प्रतिलिपि या कम से कम वेबसाइट का ही ऑर्डर निकालकर न्यायालय में जमा करने के लि‍ये कहा। ऐसा ना कर पाने की स्थिति में माननीय न्यायालय ने उक्त दोनों प्रार्थना पत्रों को स्थगित कर दिया।