उत्तर रेलवे को मिला 2,000 मास्क का पहला आर्डर


नयी दिल्ली, 21 अप्रैल (एएनएस) उत्तर रेलवे को 2,000 मास्क की आपूर्ति के लिए पहला ऑर्डर हासिल हुआ है। यह किफायती मास्क कर्मचारियों की वर्दी वाले कपड़े से बना है और इसे धोया भी जा सकता है।


यह मास्क नारंगी रंग में भी उपलब्ध हैं। रेलवे पटरियों का रखरखाव करने वाले कर्मचारी (ट्रैकमैन) ड्यूटी पर इसी रंग के कपड़े पहनते हैं।


दिल्ली का एक रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन उत्तर रेलवे का पहला ग्राहक है और उसे मंगलवार को मास्क की पहली खेप मिली।


सरकार ने सार्वजनिक स्थानों और कार्यस्थलों पर मास्क लगाना अनिवार्य कर दिया है। बाजार मूल्य 7.50 रुपये के मुकाबले यह मास्क 5.94 रुपये में आता है और यह आने वाले दिनों में मास्क की बढ़ती मांग को पूरा कर सकता है।


इसकी खूबी है कि इसका इस्तेमाल कई बार किया जा सकता है जबकि अन्य साधारण मास्क को हर उपयोग के बाद हटाना पड़ता है जिससे वह महंगा साबित होता है।


रेलवे के लिए प्राथमिकता अपने कर्मचारियों की जरूरतों को पूरा करना है, इसलिए जोन द्वारा बनाए गए मास्क को सबसे पहले अपने 1.3 लाख कर्मचारियों के बीच वितरित किया जाएगा।


अधिकारियों ने कहा कि इस जोन के तहत कार्यशालाओं में पहले ही 35,000 मास्क बनाए जा चुके हैं और मई के अंत तक इस संख्या के एक लाख तक पहुंचने की संभावना है।


उत्तर रेलवे के प्रधान मुख्य मेकेनिकल इंजीनियर अरुण अरोड़ा ने  कहा कि ये मास्क अब इतने हिट हैं कि कुछ आरडब्ल्यूए ने उनमें रुचि दिखाई है और आदेश दे रहे हैं। वे हमारे कर्मचारियों के लिए वर्दी वाले अधिशेष कपड़े से बने हैं जिनका उपयोग नहीं हो पाता। जो अप्रयुक्त रह गए हैं। हमें एक आरडब्ल्यूए से आदेश मिले हैं और हम उन्हें आपूर्ति करेंगे।


उन्होंने कहा कि जोन में हर हफ्ते 10,000 ऐसे मास्क तैयार किए जाएंगे, जिनमें से कुछ रेलवे कर्मचारियों को दिए जाएंगे, जबकि शेष ऐसे संगठनों को दिए जाएंगे जो खरीदना चाहते हैं।


उत्तर रेलवे की जगाधरी कार्यशाला ने वास्तव में रेलवे के चिकित्सा कर्मचारियों के लिए भी डिस्पोजेबल मास्क बनाए हैं, जिसके लिए अलग से कपड़ा खरीदा जा रहा है।


इन मास्क का उपयोग उत्तर रेलवे के पांच डिविजनों के अलावा कई अन्य स्थानों पर भी किया जा रहा है।


अरोड़ा ने कहा, "हम चाहते हैं कि लोग जानें कि हम ये मास्क बना रहे हैं, जो उपलब्ध हैं और जरूरत पड़ने पर हम उत्पादन में तेजी लाएंगे।"


रेलवे कोरोना वायरस से लड़ाई में सरकार की मदद के लिए सिर्फ मास्क ही नहीं बना रहा बल्कि वह विशेष ड्रेस (कवरऑल) और सेनेटाइटर का भी उत्पादन कर रहा है।


रेलवे का कवरऑल जहां 447 रुपये में आता है, वहीं बाजार में इस तरक के ड्रेस 808 रुपये में मिलते हैं।


इसी तरह रेलवे ने 119 रुपये प्रति लीटर की दर से सेनेटाइजर का उत्पादन किया है, जबकि खुले बाजार में इसकी कीमत 468 रुपये है।