गोलोक विहारी राय की सम सामयिक कविता पढ़े ..."भूख से लडने की हिम्मत खाली पेट ही जब कर गये"

*क्षणिकाएँ*.....


                      (१)
भूख से लडने की हिम्मत
खाली पेट ही जब कर गये। 
सारी घोषित सहायक हमदर्दियां
वह कागजों में लेकर ही मर गये।
जब उड़ कर गये जहाज दूर देश
नमन हो हे वतन,पैदल पटरियों पे
घर से हजार कोस दूर मर गये।


                          (२)
मौन...!
हां मौन साध लिया
मेरे हिस्से के बोल
मेरे हिस्से की हँसी
सब धरे हैं उतार 
वह चाहती है....
इन्हें धारण करे वो बच्चा
जिसे परवाह नहीं
दुनिया क्या कहेगी
जो उठते बैठते सोचता है...
माँ पतीले मे क्या पकाएगी ?
वो लकड़ी चुन लाता है
अपने कंधे पर ।


—— गोलोक विहारी राय