अब मोहब्बत रहे ,या अदावत रहे दर्मियाँ अपने कोई रवायत रहे-बलजीत सिंह बेनाम

ग़ज़ल


अब मोहब्बत रहे या अदावत रहे
दर्मियाँ अपने कोई रवायत रहे


ज़िन्दगी जीने को लाज़िमी है बहुत
ज़हन में हाँ ज़रा सी मुसीबत रहे


कुछ फ़सानों की साज़िश यही है फ़क़त
चंद हिस्सों में ज़ाहिर हक़ीक़त रहे


ख़ूँ पिला के जिगर का किया है जवां
जिन उसूलों को उनकी हिफाज़त रहे


सर कटे जाँ भी जाए बड़े शौक़ से
किसलिए ज़ालिमों की हिमायत रहे---बलजीत सिंह बेनाम
       
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