दिव्यांग महिलाओं को सशक्त बना रहीं 'पूजा'......

लखनऊ में आशियाना निवासरी पूजा मेहरोत्रा दिव्यांग महिलाओं को सशक्त कर अपने पैरों पर खड़ा कर रही हैं।


लखनऊ [राजकुमार  उपाध्याय]। कहते हैं आपके अंदर कुछ करने की इच्छा हो तो मंजिल मिल ही जाती है। कुछ ऐसे ही नेक इरादे से राजधानी की आशियाना निवासी पूजा मेहरोत्रा ने दिव्यांग महिलाओं को सशक्त कर उन्हेें अपने पैर पर खड़ा करने का न केवल संकल्प लिया, बल्कि ऐसी दो हजार महिलाओं को प्रशिक्षण देकर परिवार चलाने के लायक बना दिया। असहाय दूसरों पर निर्भर रहने वाली महिलाएं व युवतियां अब अपना काम कर समाज में अपनी पहचान बनाने को बेताब हैं। पूजा का कहना है कि जो कुछ भी ईश्वर ने आपको दिया है, उसी में खुश रहकर आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए।


ऐसे हुई शुरुआत


पूजा कहती हैं कि पांच साल पहले चारबाग रेलवे स्टेशन के पास एक युवती दिव्यांगता का प्रदर्शन कर सड़क पर भीख मांग रही थी। मेरे सामने उसने पोलियोग्रस्त पैर को दिखाते हुए हाथ फैलाया तो मुझे उसकी हालत देखकर दया आ गई। मैने उसे 10 रुपये तो दे दिए, लेकिन उसकी स्थिति की कल्पना कर मैं रात में सो नहीं पाई। एक निजी कंपनी में काम कर रहे पति अमित से इस घटना को साझा किया। मेरी संवेदना के साथ पति का साथ मिल गया और मैं अपने मिशन पर चल पड़ी। किसी भी दिव्यांग को देखती हूं तो मैं उससे बात जरूर करती हूं और उसे कुछ करने के लिए प्रेरित जरूर करती हूं।


जैसी स्थिति, वैसा काम


हर दिव्यांग महिला की अपनी क्षमता और ज्ञान होता है। उसी के आधार पर प्रशिक्षण और रोजगार की तैयारी की जाती है। कोई महिला पैर से दिव्यांग और पढ़ी लिखी है तो उसके मुताबिक कॉल सेंटर पर काम करने की ट्रेनिंग देती हैं। सिलाई, कढ़ाई, अगरबत्ती बनाना, मास्क बनना, हवन सामग्री बनाने से लेकर जैविक खाद बनाने के अलावा फलों से जैम व अचार बनाने की ट्रेनिंग भी देती हैं। 10 दिव्यांगों से मिलने पर तीन या चार ही तैयार होती हैं, लेकिन प्रयास कभी खत्म नहीं होता। लॉकडाउन में ट्रेनिंग के साथ तलाश तो बंद हो गई है, लेेकिन मोबाइल फोन के माध्यम से पुराने दिव्यांगों के माध्यम से फोन आते हैं।


केस-एक


जूफिया पैर से दिव्यांग हैं। उनका कहना है कि खुद की दिव्यांगता के साथ ही पारिवार की आर्थिक स्थिति भी ठीक नहीं थी। दो साल पहले पूजा जी से मुलाकात हुई अौर उन्होंने सेल्स की ट्रेनिंग दी। एक कपड़े के शो रूम में काम कर तीन से पांच हजार रुपये महीने कमाने लगी हूं। अब घर वाले भी खुश हैं। मुझे लगता था कि मेरा भविष्य कैसे आगे बढ़ेगा, लेकिन अब मुझे कोई चिंता नहीं है।


केस-दो


पैर की दिव्यांगता को भूल अंजलि श्रीवास्तव ट्रेनिंग के बाद अब सीतापुर रोड स्थित सौभाग्य फाउंडेशन के माध्यम से कौशल विकास के तहत ट्रेनिंग देती हैं। निश्शुल्क ट्रेनिंग के एवज में 10 हजार रुपये मिलने लगे हैं। अब वह खुद अपने पैरों पर खड़ी होकर अपने जैसों को प्रेरित करती हैं। एक साल पहले पूजा ने काउंसिलिंग कर पर्सनाॅलिटी डेवलपमेंट का प्रशिक्षण दिया था।