लिब्रहान आयोग जिसकी जांच रिपोर्ट का प्रयोग बाबरी मुकदमे में नहीं हो पाया!

बुधवार, 30 सितंबर को लखनऊ की स्पेशल CBI कोर्ट ने लगभग 28 साल पुराने बाबरी मस्जिद विध्वंस केस में अपना फ़ैसला सुना दिया है. स्पेशल CBI जज एसके यादव ने फ़ैसला सुनाते हुए कहा कि घटना पूर्वनियोजित नहीं थी. जो कुछ हुआ था, अचानक हुआ था. ये कहते हुए कोर्ट ने सभी आरोपियों को बरी कर दिया. साथ ही ये भी कहा कि अभियोजन पक्ष इन आरोपियों की संलिप्तता को लेकर साक्ष्य पेश नहीं कर सका.


साथ को कोर्ट ने ये भी कहा है कि इन 32 आरोपियों ने बाबरी मस्जिद के विध्वंस को बचाने की कोशिश की. पीछे से भीड़ आयी और उन्होंने ढांचे को गिरा दिया. कोर्ट ने ये भी कहा कि आरोपियों ने किसी भी रूप में भड़काने का काम नहीं किया.


1992 की घटना के दस दिनों में 16 दिसंबर 1992 को केंद्र सरकार ने आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के रिटायर्ड चीफ जस्टिस मनमोहन सिंह लिब्रहान की अध्यक्षता में कमिटी गठित की. इस कमीशन को कहा गया लिब्रहान कमीशन.


जब गठन हुआ, तो कमीशन को तीन महीने की डेडलाइन दी गयी. मतलब तीन महीनों के भीतर कमीशन को अपनी रिपोर्ट सौंपनी थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ.


कमीशन की समय सीमा बढ़ाई गयी. बार-बार बढ़ाई गयी. और कुल 48 बार डेडलाइन बढ़ाने के बाद इसने अपनी रिपोर्ट साल 2009 में सौंपी.  इसे अब तक का सबसे लबां आयोग कहा जाता है.  17 साल के अंतराल के बाद  इसकी रिपोर्ट आई थी. आज जब सीबीआई कोर्ट ने फैसला सुनाया है तो एक बात ये भी है कि लिब्रहान आयोग की जांच रिपोर्ट का प्रयोग मुकदमे में नहीं हो पाया. और न ही सीबीआई ने आयोग के किसी सदस्य का बयान लिया.


लिब्रहान आयोग की रिपोर्ट अख़बारों और पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए. बाद में इस रिपोर्ट को सुप्रीम कोर्ट के वकील और क़ानूनविद् एजी नूरानी ने अपनी किताब Destruction of Babri Masjid : A National Dishonour में संकलित किया.


इस रिपोर्ट में शुरुआत से अंत तक का ब्यौरा देने की कोशिश की गयी है. किसकी क्या गलती थी? और किसकी क्या गलती नहीं थी? ऐसा बताने की कोशिश की गयी थी. इस रिपोर्ट को तैयार करने के दौरान कई लोगों से बात की गयी, बतौर गवाह. कुल 33 लोग. कौन-कौन थे वो लोग?


पत्रकार मार्क टली, पायनियर अखबार के फोटो पत्रकार प्रवीण जैन, पूर्व केन्द्रीय मंत्री पीआर कुमारमंगलम, पूर्व केन्द्रीय मंत्री एसबी चव्हाण, रिटायर्ड डीजीपी और विश्व हिन्दू परिषद् के सदस्य बीपी सिंघल, पूर्व गृह सचिव नरेश दयाल, फैजाबाद के पूर्व एसएसपी डीबी रॉय, लखनऊ ज़ोन के पूर्व आईजी एके शरण, फैजाबाद डिविज़न के पूर्व कमिश्नर एसपी गौड़, धर्म संसद के सदस्य आचार्य धर्मेन्द्र देव, फैजाबाद के एडिशनल एसपी अखिलेश मेहरोत्रा, यूपी के पूर्व एडिशनल डीजीपी एनपी सिन्हा, यूपी के पूर्व प्रमुख सचिव वीके सक्सेना, यूपी के पूर्व डीजीपी प्रकाश सिंह, पूर्व डीजीपी एसवीएम त्रिपाठी, यूपी के पूर्व प्रमुख गृह सचिव प्रभात कुमार, भाजपा नेता उमा भारती, आरएसएस के नेता केएस सुदर्शन, सीपीएम के नेता ज्योति बसु, पत्रकार संजय काव, अखिल भारतीय रचनात्मक समाज की नेता निर्मला देशपांडे, भाजपा नेता मुरली मनोहर जोशी, भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी, पत्रकार रुचिरा गुप्ता, भाजपा नेता विनय कटियार, शिव सेना नेता मोरेश्वर दीनानाथ सावे, विहिप नेता विष्णु हरि डालमिया, विहिप नेता आचार्य गिरिराज किशोर, जनता दल के पूर्व नेता और पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह, फैजाबाद के पूर्व डीएम आरएन श्रीवास्तव, हिन्दू महासभा के नेता महंत अवैद्यनाथ, यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह और देश के पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव.


    इतने लोगों से बातचीत के बाद लिब्रहान आयोग ने अपनी रिपोर्ट पूरी की. इस रिपोर्ट में कुल 68 लोगों को बाबरी मस्जिद गिराने का जवाबदेह माना गया, और जिसके बाद अयोध्या और देश के कई हिस्सों में हिंसा फ़ैली. 68 लोगों की लिस्ट देखिए.


      इसमें लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे और अटल बिहारी वाजपेयी का नाम सामने आता है. इसके अलावा अशोक सिंघल, प्रवीण तोगड़िया, केएस सुदर्शन और आचार्य धर्मेन्द्र को भी इस पूरे प्रकरण के लिए दोषी माना गया. लेकिन इस रिपोर्ट के बारे में माना जाता है कि इस रिपोर्ट ने तीन लोगों को अपने फोकस में रखा है. ये तीन नाम हैं : कल्याण सिंह, लालकृष्ण आडवाणी और पीवी नरसिम्हा राव. इस रिपोर्ट के बारे में कहा जाता है कि लिब्रहान ने रिपोर्ट का बड़ा हिस्सा कल्याण सिंह और लालकृष्ण आडवाणी का दोष साबित करने में लगाया, और पीवी नरसिम्हा राव को आरोपों से बरी करने के लिए.


कल्याण सिंह के बारे में लिब्रहान कमीशन ने क्या कहा?


इस रिपोर्ट ने तत्कालीन कल्याण सिंह की सरकार के बारे में कहा कि इस पूरी कार्रवाई को अंजाम देने के लिए संघ परिवार को जिस टूल की आवश्यकता थी, वो टूल कल्याण सिंह की सरकार ने मुहैया कराया है. मुख्यमंत्री ने मस्जिद के विध्वंस में केन्द्रीय भूमिका निभाई थी. लोगों के बयानों से आयोग को ये पता चला कि मुख्यमंत्री अयोध्या में हो रही गतिविधियों का रोजाना ब्यौरा ले रहे थे. मुख्य सचिव, प्रमुख सचिव गृह, डीजीपी, एसएसपी डीआर रॉय और फैजाबाद के जिलाधिकारी मुख्यमंत्री के लगातार संपर्क में थे, जबकि एसएसपी डीआर रॉय ने इससे साफ़ इंकार किया.


 


आयोग ने कहा कि जो लोग भी जांच के दौरान आयोग के समक्ष उपस्थित हुए, उनमें से किसी की भी निर्णय लेने की कोई स्थिति नहीं थी. पूरे मामले में कोई भी व्यक्ति अगर निर्णय ले सकता था, तो वो थे मुख्यमंत्री कल्याण सिंह. अयोध्या में या अयोध्या में कारसेवा के प्रकरण में मुक्त रूप से निर्णय लेने का अधिकार किसी भी अधिकारी के पास नहीं था. मतलब, सभी को कल्याण सिंह के निर्णय मानने थे.


यूपी सरकार ने कई दफा विरोधाभासी निर्णय लिए. सरकार ने विवादित परिसर के चारों ओर – जिसमें मस्जिद भी शामिल थी – 8 से 10 फीट की दीवार का निर्माण करा दिया. इस दीवार को राम दीवार कहा गया. दीवार का निर्माण 17 फरवरी 1992 को शुरू हुआ. प्रमुख गृह सचिव की देखरेख में जब निर्माण शुरू हुआ तो उस समय राजस्व मंत्री ब्रह्म दत्त द्विवेदी, अशोक सिंघल, आचार्य गिरिराज किशोर, विनय कटियार, महंत परमहंस रामचंदर दास, लालू सिंह, राव प्रियदर्शी ने मिलकर भूमिपूजन किया. इस बात में कोई संदेह नहीं कि राम दीवार उस ज़मीन की बाउंड्री की ओर इशारा कर रही थी, जिसके भीतर राम मंदिर का निर्माण किया जाना था.


आयोग ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि यूपी सरकार द्वारा बनवाई गयी राम दीवार को राम मंदिर बनवाने की ओर एक कदम की तरह देखा गया. भाजपा नेता एससी दीक्षित और सुन्दर सिंह भंडारी ने अपने भाषणों में इस ओर इशारा भी किया था. 1992 में आयोजित अर्ध कुम्भ में भी अशोक सिंघल समेत विहिप के कई नेताओं ने कहा कि राम दीवार का निर्माण राम मंदिर के निर्माण की ओर एक और कदम है. आयोग ने कहा कि ये एकदम सुनियोजित कदम था. जिन भी लोगों को इस मामले में ज़िम्मेदार ठहराया गया है, वे सरकार और आन्दोलन के आयोजकों की मिलीभगत का हिस्सा थे.


प्रदेश सरकार के आदेश के बाद बाबरी मस्जिद – राम जन्मभूमि परिसर के आसपास की ज़मीन को दुकानें और छोटे मठ-मंदिर हटाकर समतल भी किया गया. आयोग ने इसे 6 दिसंबर की “कारसेवा” की तैयारी की तरह देखा. 23 फरवरी को गृह मंत्री एसबी चव्हाण ने मुख्यमंत्री कल्याण सिंह से बात की. एसबी चव्हाण ने कहा कि राम दीवार के बनने से लोगों के मन में अलग तरीके की संभावनाएं हैं, लेकिन राज्य सरकार ने कहा कि ये महज़ सुरक्षा व्यवस्था के लिए है.


15 अप्रैल को अयोध्या पहुंचे लालकृष्ण आडवाणी के साथ ब्रह्म दत्त द्विवेदी और अनिल तिवारी थे. आयोग के सामने आडवाणी ने बताया कि यूपी सरकार ने जिस ज़मीन का अधिग्रहण किया था, वो मंदिर के बनाने के लिए थी.


कल्याण सिंह सरकार के बारे में कहा गया कि मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने घटना के कुछ हफ्तों पहले मंत्रियों के साथ मीटिंग की थी. इस मीटिंग में कल्याण सिंह ने कहा कि यूपी में कारसेवकों को आंदोलित किया जाए. सभी ग्राम पंचायतों से 10-10 कारसेवकों को अयोध्या भेजा जाए, जिनकी संख्या कुल मिलाकर 75 हज़ार के आसपास होगी. लेकिन आयोग के सामने कल्याण सिंह ने इस आरोप को नकार दिया.


 


आयोग ने ये भी देखा कि जब विध्वंस के बाद कल्याण सिंह की सरकार को केंद्र ने बर्ख़ास्त कर दिया (जिसके बारे में कल्याण सिंह कहते हैं कि उन्होंने खुद इस्तीफा दिया), तो फिर से चुनाव हुए. कल्याण सिंह फिर से चुनाव में खड़े हुए. अपने इस अभियान में कल्याण सिंह का उत्साह, उनका प्रचार अभियान, उनका चुनावी घोषणा पत्र, और सारी बहसों में राम मंदिर छाया हुआ था. कई भाषणों के बारे में ये भी लिखा पाया जाता है उन्होंने ये स्पष्ट आदेश दिए थे कि कारसेवकों के खिलाफ किसी भी प्रकार का बल प्रयोग नहीं किया जाएगा.


जब 2009 में लिब्रहान आयोग की रिपोर्ट कोर्ट में रखी गयी, तो इसके कुछ हिस्से मीडिया में लीक हो गए. आगे चलकर संसद में गृहमंत्री पी चिदंबरम ने रिपोर्ट को सार्वजनिक किया. रिपोर्ट पर बहुत बवाल हुआ. मीडिया ने जब कल्याण सिंह से पूछा कि उनका क्या कहना है? तो इस पर उन्होंने जवाब दिया कि लिब्रहान कमीशन की रिपोर्ट राजनीतिक रूप से प्रेरित है. लेकिन कल्याण सिंह ही नहीं, लिब्रहान कमीशन ने लालकृष्ण आडवाणी पर भी अपना फोकस बनाए रखा.


क्या कहा गया आडवाणी के बारे में?


आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी 5 दिसंबर की रात को अयोध्या पहुंचे थे. आडवाणी के सभी बयानों-भाषणों के बरअक्स आयोग के सामने सदस्यों ने आडवाणी को बचाने की कोशिश की. कहा गया कि आडवाणी के बारे में आयोग से कई गवाहों ने कहा कि आडवाणी ने कोई भी भड़काऊ भाषण नहीं दिए थे.


6 दिसंबर के घटनाक्रम के बारे में आयोग ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि जोशी, आडवाणी और विनय कटियार पूजा के लिए बने मंच पर पहुंचे. उनके साथ कई साधु-संत और अशोक सिंघल जैसे विहिप के बड़े नेता मौजूद थे. उन्हें देखकर कारसेवकों का एक जत्था आरएसएस स्वयंसेवकों की सेवा कतार तोड़कर पूजा मंच के पास पहुंच गया. कई कारसेवकों को संघ के कार्यकर्ताओं ने बाहर तो कर दिया, लेकिन कुछ ही देर में सभी नेता पूजा के मंच से उतरकर वहां से 200 मीटर दूर मौजूद रामकथा कुंज पहुंच गए.


 


आयोग ने कहा कि जब कारसेवक मस्जिद के ऊपर चढ़ गए थे, तो लालकृष्ण आडवाणी ने मंच से ये अपील की कि कारसेवक मस्जिद से उतर जाएं. जब कारसेवकों ने आडवाणी की बात नहीं सुनी, तो उन्होंने उमा भारती और आचार्य धर्मेन्द्र देव को भेजा. उन्होंने लौटकर आडवाणी को जानकारी दी कि कारसेवक उनकी बात नहीं सुन रहे हैं. बकौल आयोग की रिपोर्ट, कारसेवक कह रहे थे, “हम यहां हलुआ-पूरी खाने नहीं आए हैं. हम उस तरीके के कारसेवक नहीं. हम अपने घरों से यहां आये हैं कि गोली खा सकें.”


आयोग ने कहा है कि जो नेता आडवाणी की ओर से मनाने गए थे, उनकी अभी की कार्रवाई में और पहले की भड़काऊ कार्रवाईयों में बहुत विरोधाभास था. आडवाणी ने ये तो कहा कि उन्हें 6 दिसंबर की कारसेवा का साक्षी बनने का जो मौक़ा मिला, उसके लिए वे गौरवान्वित हैं. लेकिन उन समेत कई नेताओं को मस्जिद का टूटना बहुत दुर्भाग्यपूर्ण लगा.


लेकिन यहीं पर ये तथ्य भी मौजूद है कि अयोध्या में राम मंदिर बनवाने के लिए निर्णायक आन्दोलन की शुरुआत आडवाणी ने की थी. आडवाणी ने गुजरात के सोमनाथ से रथयात्रा शुरू की. 25 सितंबर को यानी पंडित दीनदयाल उपाध्याय के जन्मदिन के दिन. कई राज्यों से होते हुए ये रथयात्रा अयोध्या पहुंचनी थी, लेकिन बिहार के समस्तीपुर में लालू यादव सरकार ने आडवाणी, प्रमोद महाजन समेत तमाम नेताओं को गिरफ्तार कर लिया.


आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, भले ही आडवाणी ये कहते रहे हों कि वे कारसेवकों को उतरने का आदेश दे रहे थे, या मस्जिद का टूटना पूरी तरह से दुर्भाग्यपूर्ण है, लेकिन कारसेवा को लेकर किये गए आन्दोलन और दिए गए भाषणों को देखें तो बहुत अंतर है. आयोग ने लिखा,


“ढांचे का टूटना बेहद सुनियोजित था, जिसे कई राजनीतिक दलों के शीर्ष नेतृत्त्व ने पूरी जानकारी के साथ एक संयुक्त कार्रवाई के साथ अंजाम दिया था. विध्वंस उन सभी लोगों की आंखों के सामने हुआ, जो इस पूरी घटना के लेखक और नेता थे. पूरी घटना के दौरान तमाम राजनीतिक दलों से जुड़े हुए, आरएसएस और अन्य नेता साफ़-साफ़ खुश दिख रहे थे, जबकि आडवाणी और अटल बिहारी वाजपेयी ने इसके खिलाफ़ वक्तव्य दिया था.”


आयोग ने कहा कि पूछताछ के समय आडवाणी ने ढांचे के टूटने पर दुःख जताया और बार-बार कहा कि उन्होंने किसी भी मौके पर, यहां तक कि अपनी रथयात्रा में भी, कोई भड़काऊ भाषण नहीं दिया था. लेकिन आयोग के सामने मौजूद गवाहों और तमाम मीडिया रिपोर्टों ने अलग तस्वीर पेश की. आयोग ने माना कि वहां हो रही कारसेवा की पूरी जानकारी आडवाणी, जोशी और वाजपेयी समेत समूचे संघ परिवार को थी, और प्लानिंग के बाद ही बाबरी मस्जिद गिराई गयी.


जब लिब्रहान कमीशन की रिपोर्ट सबमिट की गयी तो पूरे कमीशन में एक ही व्यक्ति था. सिर्फ जस्टिस लिब्रहान. उनके साथ अनुपम गुप्ता एक वकील थे, उन्होंने कमीशन की कार्रवाई पर सवाल उठाए. कहा कि कमीशन जानबूझकर आडवाणी को दोषी साबित करना चाहता था, जबकि पीवी नरसिम्हा राव को दोषमुक्त साबित करना चाहता था.