अरुण कुमार सिंह (संपादक )
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के लोकसभा में बयान से केवल यही स्पष्ट नहीं हुआ कि चीनी सेना लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर यथास्थिति बदलने पर आमादा है, बल्कि यह भी साफ हुआ कि उसकी नीयत ठीक नहीं। उसकी खराब नीयत का पता इससे भी चलता है कि सैन्य स्तर पर तमाम बातचीत के बाद भी वह पीछे हटने को तैयार नहीं। चूंकि रक्षा मंत्री का बयान यह रेखांकित कर रहा है कि चीनी सेना नियंत्रण रेखा पर यथास्थिति बनाए रखने संबंधी समझौतों का पालन करने के लिए तैयार नहीं, इसलिए भारत को भी इस विचार करना होगा कि चीन के साथ हुए विभिन्न समझौतों के प्रति किस सीमा तक प्रतिबद्धता जताई जानी चाहिए? यह ठीक नहीं कि चीन तो हर तरह के समझौतों को धता बताए और भारत खुद को उनसे बांधे रखे। दुष्ट के साथ दुष्टता का ही व्यवहार नीतिसम्मत है।
चीन के कपट भरे आचरण को देखते हुए यह आवश्यक ही नहीं, अनिवार्य है कि देश का राजनीतिक वर्ग एक स्वर में उसे चेताए। यह दुर्भाग्यपूर्ण ही नहीं, शर्मनाक भी है कि जब राजनाथ सिंह ने लद्दाख सीमा पर स्थिति को चुनौतीपूर्ण बताते हुए यह अपील की कि सभी सांसदों को एकजुट होकर सेना का मनोबल बढ़ाना चाहिए, तब कांग्रेस ने सदन का बहिष्कार करना जरूरी समझा। आखिर इस तरह के बहिष्कार से कांग्रेस देश और दुनिया को क्या संदेश देना चाहती है
आखिर राजनीति का इससे निकृष्ट रूप और क्या हो सकता है कि जब दुनिया को देश की एकजुटता का संदेश देने की आवश्यकता है, तब कांग्रेस न केवल अलग राग अलाप रही है, बल्कि प्रधानमंत्री पर ऐसे आक्षेप करने में लगी हुई है कि वह चीन की चुनौती का सामना करने को तैयार नहीं। यह सस्ती राजनीति है।