1976 तक भारत अघोषित हिन्दुराष्ट्र था फिर भारत "सेकुलर" कैसे बना यहाँ जानें

     12 जून 1975 को इलाहाबाद हाई कोर्ट के द्वारा इंदिरा गांधी पर सरकारी मशीनरी का गलत उपयोग करने पर अगले 6 साल  के लिए चुनाव लड़ने और किसी भी पद को संभालने पर रोक लगा दी गई थी।
उसके बाद 25 जून को अपनी प्रधानमंत्री कुर्सी छोड़ने की बजाय पूरे भारत में इमरजेंसी लगा दी गई। मार्च 1977 तक ताकि ना तो कोई कुर्सी से हटा सके ना अगले साल चुनाव हो सके।
इतिहास में इसे भारत का काला दिन बोला गया क्योंकि न्यायालय के फैसले के खिलाफ जाते हुए अपनी शक्तियों का गलत उपयोग किया गया और देश पर अपनी कुर्सी बचाने के लिए आपातकाल लगा दिया गया और यह आपातकाल पूरे 21 महीनों तक पूरे भारत पर लागू रहा जिस दौरान मूल संविधान जिसको बाबा साहब भीमराव अंबेडकर जी ने रखा था उस संविधान के साथ छेड़छाड़ की गई।
      उसके बाद जिसने भी आंदोलन किए उसको उठाकर जेल में डाल दिया। लोगों की नसबंदी की गई वह भी जबरदस्ती करीब 60 लाख लोगों की जबरदस्ती नसबंदी की गई जिसमें सैकड़ों लोगों की जान भी गई।
*इसे कहते हैं दादागिरी और संविधान का अपमान।*
यह लोग आज भारत को संविधान की बात समझाते हैं सहिष्णुता की बात समझाते हैं शांति की बात समझाते हैं।


आपातकाल के दौरान मूल संविधान में जोड़े गए शब्द जो आज भी विवादित हैं।
भारतीय संविधान में बयालीसवाँ संशोधन, जो सन 1976 में हुआ, उसमे संसद को सर्वोच्चता प्रदान की गई और मौलिक अधिकारों पर निर्देशक सिद्धांतों को प्रधानता दी गई। इसमें 10 मौलिक कर्तव्यों को भी जोड़ा गया। नये शब्द – *(सोशलिस्ट)* और *(सेक्युलर)*  को संविधान की प्रस्तावना में जोड़ा गया।
भारत में पंथनिरपेक्षता इससे पहले नहीं थी, ऐसा नहीं, किन्तु संविधान की प्रस्तावना में ‘सेक्युलर’ शब्द के रूप में इसका उल्लेख नहीं था। आपको ये जानकार आश्चर्य होगा कि संविधान सभा ने लंबी बहस के वावजूद भी मूल संविधान में धर्मनिरपेक्षता शब्द को जगह नहीं दी थी। क्या उन्हें भय था कि यह शब्द भविष्य में दुबारा भारत के विभाजन का कारण बन सकता है ? बिलकुल सही बात है। देश के कुछ महान नेताओं के विचार पढ़ें तो सत्यता का अहसास हो जाएगा। यदि आप मोहनदास करम चन्द्र गांधी (गांधी जी की जीवनी धनंजय कौर), सरदार वल्लभ भाई पटेल (संविधान सभा में दिए गए उनके भाषण) और बाबा साहब भीमराव रामजी अंबेडकर (डा.अंबेडकर सम्पूर्ण वाग्मय, खण्ड १५१) के इस्लाम पर व्यक्त किये गए विचार पढ़ लें तो आपको पता चल जाएगा कि ‘धर्मनिरपेक्षता’ शब्द को संविधान में वो क्यों रखने के पक्ष में नहीं थे
भारत और कई विदेशी इतिहासकारों ने इसे भारतीय संविधान का काला दिन बताया।


इसके बाद जब आपातकाल हटाया गया और चुनाव हुए तो उसमें कांग्रेस बुरी तरीके से पराजित हुई और भारत के लोकतंत्र ने उसे जमीन पर ला गिराया।


इसके लिए 2 जनवरी 2011 को न्यायालय ने इस गलती को स्वीकार किया और माना कि एक प्रधानमंत्री ने अपनी कुर्सी बचाने के लिये भारत पर आपातकाल लगाया गया और उस दौरान संविधान और लोकतंत्र की हत्या हुई जिसके लिए उच्च न्यायालय ने लोकतंत्र से माफी मांगी।


अब आज कॉन्ग्रेस संविधान और लोकतंत्र की दुहाई जो दे रही है उसे अपना असली चेहरा देखना चाहिए उसने संविधान को और लोकतंत्र को माना ही कब है उसे जब जब मौका मिला है उसने संविधान के साथ छेड़छाड़ की है और डेमोक्रेसी की हत्या की है।


भारत स्वाभाविक हिन्दुराष्ट्र है, अब इसे घोषित हिन्दुराष्ट्र बनाने के लिए हमें संघर्ष के लिए खड़ा होना चाहिये।
ये राष्ट्र हमारा है, इसे लूटने नहीं देगें।
कांग्रेस ने हिंदुओं को न भरने वाले घाव दिये हैं।