आजादी की महानायिका झलकारीबाई की 190वीं जयंती,जानें उनके बारे में

  उत्तर प्रदेश में जौनपुर के सरांवा गांव में स्थित शहीद लाल बहादुर गुप्त स्मारक पर आज हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकंन आर्मी व लक्ष्मीबाई ब्रिगेड के कार्यकतार्ओं ने देश की प्रथम आज़ादी की महानायिका एवं वीरांगना झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की प्रिय सहेली झलकारी बाई की 190 वां जयंती मनाई। इस अवसर पर कार्यकतार्ओं ने शहीद स्मारक मोमबत्ती व अगरबत्ती जला कर उन्हें अपनी श्रंद्धाजलि दी।


    शहीद स्मारक पर उपस्थित लोगों को सम्बोधित करते हुए लक्ष्मीबाई ब्रिगेड की अध्यक्षा मंजीत कौर ने कहा कि भारत की स्वाधीनता के लिए 1857 में हुए संग्राम में पुरुषों के साथ महिलाओं ने भी कन्धे से कन्धा मिलाकर बराबर का सहयोग दिया था। कहीं-कहीं तो उनकी वीरता को देखकर अंग्रेज अधिकारी एवं पुलिसकर्मी आश्चर्यचकित रह जाते थे। ऐसी ही एक वीरांगना थी झलकारी बाई, जिसने अपने वीरोचित कार्यों से पुरुषों को भी पीछे छोड़ दिया।


     लक्ष्मीबाई ब्रिगेड की अध्यक्षा ने कहा कि वीरांगना झलकारी बाई का जन्म 22 नवम्बर, 1830 को ग्राम भोजला जिला झांसी उत्तर प्रदेश में हुआ था। उनके पिता मूलचन्द्र सेना में काम करते थे। इस कारण घर के वातावरण में शौर्य और देशभक्ति की भावना का प्रभाव था। घर में प्राय: सेना द्वारा लड़े गए युद्ध, सैन्य व्यूह और विजयों की चचार् होती थी। उन्होंने कहा कि मूलचन्द्र जी ने बचपन से ही झलकारी को अस्त्र-शस्त्रों का संचालन सिखाया। इसके साथ ही पेड़ों पर चढ़ने, नदियों में तैरने और ऊँचाई से छलांग लगाने जैसे कार्यों में भी झलकारी पारंगत हो गई।


    उन्होंने कहा कि एक बार झलकारी बाई जंगल से लकड़ी काट कर ला रही थी, तो उसका सामना एक खूंखार चीते से हो गया। झलकारी ने कटार के एक वार से चीते का काम तमाम कर दिया और उसकी लाश कन्धे पर लादकर ले आई। इससे गांव में शोर मच गया और एक बार उसके गांव के प्रधान को मार्ग में डाकुओं ने घेर लिया। संयोगवश झलकारी भी वहां आ गई। उसने डण्डे से डाकुओं की भरपूर ठुकाई की और उन्हें पकड़कर गांव ले आई। ऐसी वीरोचित घटनाओं से झलकारी पूरे गांव की प्रिय बेटी बन गई।